रुद्राक्ष मनुष्य के लिए भगवान शिव द्वारा प्रदान किया हुआ एक अनुपम उपहार है। पौराणिक कथानुसार, जब भगवान शिव ने त्रिपुर नामक असुर के वध के लिए महाघोर रूपी अघोर अस्त्र का चिंतन किया, तब उनके नेत्रों से आंसुओं की कुछ बूंदे धरती पर गिरीं, जिनसे रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इसी वजह से रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतिनिधि माना जाता है ।
वैसे तो रुद्राक्ष किसी भी वर्ण जाति का व्यक्ति धारण कर सकता है, लेकिन शास्त्रों में वर्ण के अनुसार, रुद्राक्ष का वर्गीकरण किया गया है। ब्राह्मणों को श्वेत यानि बादामी रंग का, क्षत्रियों को लाल रंग का, वैश्यों को पीले रंग का तथा शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना श्रेयस्कर होता है। धारण करने लिए रुद्राक्ष हमेशा सुंदर, सुडौल, चिकना, कांटेदार और प्राकृतिक छिद्र से युक्त होना चाहिए। जो रुद्राक्ष कहीं से टूटा-फूटा और कृत्रिम छिद्र से युक्त हो, ऐसा रुद्राक्ष धारण करने योग्य नहीं माना गया है।
वैसे तो रुद्राक्ष मुख्यतः एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक पाया जाता है, लेकिन कहीं-कहीं बाइस मुखी रुद्राक्ष भी पाए जाते हैं, जिनको धारण करने का अलग-अलग फल प्राप्त होता है। आकार के अनुसार देखा जाए, तो धारण करने हेतु चने के आकार का रुद्राक्ष अधम, बेर के आकार का माध्यम तथा आंवला के आकार का उत्तम माना गया है। रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार का दिन शुभ माना गया है।
इस दिन प्रातःकाल पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके आसन पर बैठकर रुद्राक्ष को दूध व गंगाजल से स्नान कराकर व धूपबत्ती दिखाकर शुद्ध कर लेना चाहिए, फिर रुद्राक्ष का पूजन कर लाल धागे या सोने चांदी के तार में पिरोकर शिव प्रतिमा या शिव लिंग से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया में शिव पंचाक्षर मंत्र का जप करते रहना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, जो मनुष्य अपने कंठ में बत्तीस, मस्तक पर चालीस, दोनों कानों में छह-छह, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्ष धारण करता है। वह साक्षात शिव स्वरुप हो जाता है।
रुद्राक्ष धारण करने वालों को अंडा, मांस व मदिरा से दूर रहना चाहिए। रात में सोते समय रुद्राक्ष उतार कर सोना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है और शिव की कृपा प्राप्त होती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राक्ष का पूजन और दान बहुत श्रेयस्कर माना गया है। रुद्राक्ष के दर्शन से पुण्य लाभ, स्पर्श से उसका सौ गुना पुण्य लाभ और धारण करने से करोड़ गुना पुण्य लाभ होता है और इसकी माला का मंत्र जप करने से करोड़ गुना पुण्य प्राप्त होता है।
इसके अलावा, जो व्यक्ति अपने सिर पर रुद्राक्ष धारण कर स्नान करता है, उसे गंगा में स्नान करने का पुण्य प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु के समय जिस व्यक्ति के गले में रुद्राक्ष पड़ा हो, वह सीधे शिवलोक जाता है। रुद्राक्ष धारण करने से भूत-प्रेत और ग्रह बाधा का भी शमन होता है।
रुद्राक्ष को हमेशा ह्रदय के पास धारण करना चाहिए, इससे हृदय रोग, हृदय का कम्पन और ब्लड प्रेशर आदि रोगों में आराम मिलता है। सभी रुद्राक्षों में एक मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ माना गया है। महाभागवत पुराण के अनुसार, जिस मनुष्य के घर में एक मुखी रुद्राक्ष होता है, उसके घर में लक्ष्मी सदैव स्थिर होकर निवास करती हैं। इसके अलावा भगवान शिव ने स्वयं कहा है कि शरीर के अंगों पर रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य के सैकड़ों जन्मों के अर्जित पापों का भी नाश हो जाता है।
ऐसा माना जाता है कि तीर्थ स्नान, दान, जप, यज्ञ, देव पूजन व श्राद आदि दैविक कार्य बिना रुद्राक्ष धारण करे जाएं, तो वे सारे कार्य निष्फल हो जाते हैं। गोल एकमुखी रुद्राक्ष बहुत ही दुर्लभ है। इसलिए आजकल ये नकली बनाकर महंगे दामों पर बेचे जाते है। यहां तक कि रुद्राक्ष पर नकली शिवलिंग त्रिशूल ॐ आदि के पवित्र चिह्न बनाकर भी बेचे जाते हैं। इन्हें अगर गौर से देखा जाये, तो आसानी से नकली रुद्राक्ष पहचाना जा सकता है।