योगी सूबे की सियासत में पैदा करने जा रहे नए समीकरण
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे की सियासत में नए समीकरण पैदा करने जा रहे हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की उप-जातियों को भाजपा के पाले में करने के लिए यह उनका मास्टरस्ट्रोक भी हो सकता है। चार सदस्यों वाली सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ओबीसी के लिए आरक्षित कुल 27 प्रतिशत कोटे में से यादव और कुर्मी को केवल सात प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने ओबीसी के भीतर उप-जातियों के वर्गीकरण के लिए इस समिति का गठन किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक समिति की राय है कि यादव और कुर्मी ये दोनों जातियां सांस्कृतिक रूप से ही नहीं बल्कि आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभाव रखने वाली हैं। यादवों को समाजवादी पार्टी (सपा) का और कुर्मी समाज को भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल का कोर वोट बैंक समझा जाता है।
जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अगुवाई वाली समिति ने ओबीसी को 79 उप-जातियों में वर्गीकृत किया है। समिति की इस रिपोर्ट को पिछड़ा कल्याण मंत्री एवं भाजपा की सहयोगी पार्टी एसबीएसपी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र मंगलवार से शुरू हो रहा है। गौरतलब है कि राजभर ने चुनौती दी है कि लोकसभा चुनावों से पहले समिति की सिफारिशों को यदि लागू नहीं किया गया तो वह बड़े आंदोलन की शुरुआत करेंगे। समिति अपनी रिपोर्ट योगी सरकार को सौंप चुकी है। रिपोर्ट की मानें तो समिति ने लोध, कुशवाहा एवं तेली सहित अत्यंत पिछड़ी जातियों को अधिक राहत पहुंचाने की बात कही है। समिति ने इनके लिए 11 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया है।
समिति ने 400 पन्ने की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए रोजगार के अवसर उनकी संख्या के मुकाबले आधे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी की कुछ उप जातियों को नौकरी के अवसर ज्यादा मिल रहे हैं और इन्हें उभरते ‘मध्यम वर्ग’ की श्रेणी में रखा जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार राजभर, घोसी एवं मुस्लिम समुदाय के कुरैशी जैसी अत्यंत पिछड़ी जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ये समुदाय या तो तृतीय अथवा चौथी श्रेणी की नौकरियों में हैं या पूरी तरह से नौकरियों में नहीं है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत जून में ओबीसी के भीतर संभावित कोटे के आंकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया था। योगी का यह कदम अत्यंत पिछड़े वर्ग में भाजपा की पैठ बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। यूपी में सपा और बसपा के बीच राजनीतिक गठबंधन होने की बात चल रही है। ऐसे में इस महागठबंधन से मुकाबले के लिए योगी का यह दांव मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।