योगी ही होंगे मोदी के सारथी, संघ ने दी कमान
प्रमोद गोस्वामी
नेताओं ने तुष्टिकरण की राजनीति से जहाँ देश के भाइचारे के ताने-बाने को कमज़ोर किया, वहीं उत्तर प्रदेश में जातिवादी राजनीति ने प्रदेश को जातीय कबीलों में तब्दील कर दिया। प्रदेश के राजनीतिक मिजाज़ को देखते हुए ऐसा लगता है कि 2019 का लोकसभा चुनाव ‘हिंदुत्व’ को केंद्र में रखकर लड़ा जाएगा।
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्त्तर प्रदेश की दो बड़ी पार्टियों समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को मिली करारी शिकस्त के साथ 20 राज्यों में भाजपा की सरकार बनने से प्रदेश ही नहीं देश के सभी राजनैतिक नेताओं के सामने अपने अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया और जो दल कभी एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे अपने-अपने अस्तित्व को बचाने के लिए भाजपा के विरुद्ध लामबंद होने लगे।
गेस्ट हाउस कांड के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक-दूसरे के राजनैतिक स्तर पर घनघोर विरोधी हो गए थे बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं पर 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा के बीच चुनावी गठबंधन की आधारशिला भी रख दी गयी जो भाजपा के लिए एक गंभीर चिंता और चिंतन का विषय बन गया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव की ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देकर ‘हिंदुत्व’ का कार्ड खेला है।
मुख्यमंत्री योगी प्रखर हिंदुत्व विचारधारा के तो हैं ही, जिसका लाभ उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से निपटने में तो मिलेगा ही देश के अन्य राज्यों में भी योगी का लाभ मिल सकता है। गुजरात, कर्नाटक और पांडिचेरी विधानसभा चुनाव में भी योगी जी का हिंदुत्ववादी चेहरे के रूप में प्रयोग किया गया है और जिन सीटों पर योगी जी ने प्रचार किया था, भाजपा ने उनमें से अधिकांश सीटें जीती भी हैं।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि केंद्र में भाजपा की सरकार और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से जहां गैर भाजपाई दलों में अपने-अपने अस्तित्व को बचाने का संकट खड़ा हो गया तो वहीं मुस्लिम समाज में भी हलचल पैदा हो गयी।
2014 का चुनाव मोदी जी के नेतृत्व में लड़ा गया था। गुजरात में गोधरा कांड के बाद मोदी हिंदुत्ववादी नेता के रूप में उभरे। यह भी सच है कि यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार, गुजरात के विकास मॉडल के साथ-साथ मोदी के हिंदुत्ववादी चेहरे का 2014 के लोकसभा चुनाव में लाभ भाजपा को मिला था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश में अगर कोई हिंदुत्ववादी चेहरा है तो वो एकमात्र योगी आदित्यनाथ को ही जाना जाता है और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों में मोदी के मुखौटे के रूप में हिंदुत्ववादी चेहरे के रूप में योगी का पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहती है।
उत्तर प्रदेश में इसी वर्ष गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनाव में जिस ढंग से मुसलमानों ने भाजपा के विरुद्ध खड़े सपा एवं रालोद के प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान कर भाजपा को तीनों सीटों पर शिकस्त दी इससे साफ़ है कि 2019 में 19.6 % मुस्लिम भाजपा को हराने के लिए एकजुट रहेगा और सपा-बसपा गठबंधन जिसकी पूरी सम्भावना है भाजपा की नकेल कसने के लिए काफी है।
लोकसभा के तीनों उपचुनाव में भाजपा की पराजय के सभी कारणों को अगर लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखने से प्रदेश की राजनैतिक आबोहवा का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।
प्रदेश में योगी सरकार के लगभग सवा साल हो चुके हैं। योगी जी एक क्लीन मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं पर जनता के बीच सरकार की छवि नहीं बन पायी है। वहीं जहां एक तरफ विपक्ष लामबंद है तो दूसरी तरफ भाजपा के मंत्री, सांसद से विधायक तक निष्ठावान भाजपा कार्यकर्ता तक योगी सरकार से खुश नहीं है, इससे निपटना योगी के लिए एक बड़ी चुनैती है।
लोकसभा चुनाव सर पर है कार्यकर्ताओं की नाराज़गी, सहयोगी दलों की बेरुखी से निपटने के जातिगत समीकरणों को बैठाना मुख्यमंत्री योगी के लिए कठिन नहीं तो आसान भी नहीं होगा।
योगी जी पर 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ साथ जातिगत समीकरणों विशेष रूप से पिछड़ों एवं दलितों को साधने की गुरुत्तर जिम्मेदारी तो दे दी गयी है पर अभी तक पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम बंद है, पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन नहीं हुआ है तो अनुसूचित जाति-जनजाति विकास निगम में सवा वर्ष बीत जाने के बाद भी कोई अध्यक्ष नहीं बनाया गया। हाल ही में अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद पर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल की नियुक्ति ज़रूर हुई है।
संघ द्वारा योगी जी को पूरी स्वतंत्रता दिए जाने से उनके प्रखर हिंदुत्ववादी होने का तो असर दिखाई देगा और हिन्दू मतदाताओं में जोश-खरोश भरने का सामर्थ मुख्यमंत्री में भरपूर है। साधु-संत समाज में भी योगी जी का प्रभाव और आदर है पर संगठन और सरकार में मौजूद कुछ मंत्रियों और संगठन के एक दो नेताओं के बीच वैचारिक मतभेद दूर करने के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं जिन पर मतदाताओं को मतदान के लिए निकालने की अहम् ज़िम्मेदारी होती है उनकी नाराज़गी दूर करना भी एक बड़ी चुनौती है।
भाजपा के निष्ठावान नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की नाराज़गी है कि सत्ता के बाहर रहने पर तपती धूप और बरसात में धरना प्रदर्शन और आंदोलन हम करते हैं लाठी डंडे और सरकार की आलोचना हम सहते हैं किन्तु बाहर से आये नेता मंत्री बन जाते हैं और माल भी कमाते हैं। अधिकारी हमारी शिकायतें तक नहीं सुनते हैं।
योगी जी ने मुख्यमंत्री बनते ही अधिकारियों को निर्देश दे दिए थे कि किसी भी मंत्री, विधायक, सांसद या कार्यकर्ता की गलत शिकायतों को बिलकुल न माने इससे जहां पार्टी के निष्ठावान लोगों की अनदेखी हुई और अधिकारी मनमानी करने लगे, जिससे सरकार की छवि भी ख़राब हुई और कार्यकर्ताओं की नाराज़गी भी बढ़ती गयी।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का ये तक कहना है कि बाहर से आया एक नेता जो भाजपा को पानी पी-पीकर कोसता रहा सरकार में मंत्री बन गया और सिविल एविएशन में करोड़ों-अरबों के काम हथिया लिए और निष्ठावान कार्यकर्ता मूंगफली तल रहे हैं।
एक कार्यकर्ता ने तो इस तरह अपना दर्द बयां किया, ‘हर जुबां में कहके देख लिया हाल-ए-दिल उनसे, एक ख़ामोशी को भी आज़मा के देखते हैं।’ कार्यकर्ताओं की ये ख़ामोशी 2019 के लोकसभा चुनाव की तरफ ही इशारा करती है अगर कार्यकर्ताओं की ख़ामोशी नज़र आयी तो लड़ाई भी मुश्किल होगी।
निष्ठावान कार्यकर्ताओं का दर्द इसलिए भी वाज़िब लगता है कि भाजपा का विरोध करने वाले कई नेता मंत्री बन गए हैं, वे सरकार की आलोचना भी कर रहे हैं, माल भी काट रहे हैं और निष्ठावानों को नैतिकता की शिक्षा दी जा रही है।
प्रधानमंत्री मोदी की तरह योगी मेहनती, कर्मठ और ईमानदार होने के साथ-साथ मन के मालिक भी हैं जो सोचते हैं वही करते भी हैं और योगी ‘हठ योगी’ भी हैं मोदी का मुखौटा योगी 2019 में बन पाएंगे या नहीं कितनी सफलता मिलेगी, इसका तो चुनाव के बाद ही आकलन होगा।