रायपुर: अगर कोई व्यक्ति छत्तीसगढ़ के जंगलों के बारें में सुनता है तो उसके दिमाग में सबसे पहले नक्सलियों का ख्याल आता है। लेकिन इसी स्टेट के मनेन्द्रगढ़ के जंगलो की गुफाओं में हैं भगवान शिव प्राचीन मंदिर। इस मंदिर की खासियत ये हैं कि 50 फीट तक घुटनों और कोहनियों पर रेंगते हुए जाने पर भगवान शिव के दर्शन होते हैं।
– यहां मान्यता है कि जब भगवान शिव भस्मासुर के डर से पहाड़ियों के अंदर जाकर छुपे थे तब उनकी जटाओं के अवशेष पत्थरों में बन गए जो आज भी देखे जा सकते हैं।
– गुफा वाले इस मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मंदिर के महंत शिवप्रसाद दास ने बताया कि जटाशंकर का इतिहास काफी पुराना है।
– इस मंदिर में प्रगट हुई भगवान शिव की मूर्ति के ऊपर कुदरती रूप से जल की बूंद अपने आप गिरती है।
– सालभर यहां प्राकृतिक रूप से पहाड़ से रिसता हुआ पानी पीने के लिए मिलता है। यहां पानी काफी ठंडा है।
– इस मंदिर में प्रगट हुई भगवान शिव की मूर्ति के ऊपर कुदरती रूप से जल की बूंद अपने आप गिरती है।
– सालभर यहां प्राकृतिक रूप से पहाड़ से रिसता हुआ पानी पीने के लिए मिलता है। यहां पानी काफी ठंडा है।
शिवलिंग में जटाओं जैसी आकृति
– शिव मंदिर में पहुंचने के लिए सिर्फ पैदल जाने का ही मार्ग है। इसके लिए 12 किमी पैदल चलकर एक पहाड़ी मिलती है जिसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि कोई सर्प फन फैलाकर बैठा हो।
– शिव मंदिर में पहुंचने के लिए सिर्फ पैदल जाने का ही मार्ग है। इसके लिए 12 किमी पैदल चलकर एक पहाड़ी मिलती है जिसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि कोई सर्प फन फैलाकर बैठा हो।
– पहाड़ी के नीचे स्थित है प्राचीन शिव मंदिर। इस प्राचीन शिव मंदिर को क्षेत्र के श्रद्धालु जटाशंकर के नाम से पुकारते हैं। यह नाम पड़ने के पीछे शिव की प्राचीन शिवलिंग में जटाओं जैसी आकृति साफ दिखाई पड़ती है।
कहां है मंदिर
– मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत बिहारपुर के बैरागी से लगभग 12 किमी दूर घने जंगल से आगे पहाड़ी के नीचे जटाशंकर में स्थित है प्राचीन शिव मंदिर ।
– मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत बिहारपुर के बैरागी से लगभग 12 किमी दूर घने जंगल से आगे पहाड़ी के नीचे जटाशंकर में स्थित है प्राचीन शिव मंदिर ।
– लोगों का कहना है कि प्रदेश सरकार के साथ ही अधिकारी यदि इस ओर ध्यान दें तो आने वाले समय में यह मंदिर छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटक एवं धार्मिक स्थलों में एक होगा।
– दुर्गम वन क्षेत्र को पारकर पहाड़ी के अंदर लगभग 50 फीट से ज्यादा घुटनों और कोहनियों के बल ही चलकर अंदर पहुंचा जा सकता है।