राजनीतिक रसूख के चलते जारी है मिलावट का खेल
लखनऊ –पेट्रोल में होने वाली मिलावट से हर वाहन चालक वाकिफ हैं. मिलावट से वाहनों में होने वाली खराबी को चुपचाप सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता. शिकायत पर भी कोई ठोस कार्रवाई नही होने पर ग्राहक निराश हो जाता है. इन पम्पों पर मिलावट का खेल होने और इनके खिलाफ कार्रवाई न होने की एक खास वजह लखनऊ के ज्यादातर पेट्रोल पंपों पर रसूखदार और राजनेताओं का कब्जा होना है.
स्मरण रहे कि पेट्रोलियम कंपनियां भी इनके खिलाफ कार्रवाई करने से घबराती हैं. इन पेट्रोलियम कंपनियों को इन पंप के रसूखदार और राजनीति से जुड़े लोगों का डर लगा रहता है. जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लखनऊ के पचास फीसदी के आस पास पेट्रोल पंप पर राजनेताओं या उनके करीबियों का कब्जा है.
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 2004 में राजधानी लखनऊ के अस्सी प्रतिशत पंप राजनेताओं व रसूखदारों को आवंटित थे जिसके चलते पेट्रोल की मिलावट चरम पर थी. जिसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसी समय इन राजनीतिक लोगों के आवंटन को निरस्त कर के फिर से पंप की नीलामी करने के निर्देश दिए थे. इस निर्देश के बाद से पंप के डीलरों में राजनीतिक लोगों की कुछ कमी आई लेकिन आज भी पचास फीसदी पंपों का संचालन राजीतिक लोगों के हाथों में ही है.
इस बारे में पेट्रोल पंप एसोसिएशन लखनऊ के सचिव सुधीर बोरा का कहना है कि अधिकतकर पेट्रोलपंपों का अाबंटन ऐसे लोगों के नाम पर होता है जिनका सीधा संबंध राजनेताओं और रसूखदार लोगों से नहीं होता है. खास बात ये है कि ये नेता पंप का आवंटन अपने नाम पर नहीं कराते हैं. ये अपनी पहुंच का उपयोग करके पंप अपने किसी साथी या दूर के रिश्तेदार के नाम पर ले लेते हैं और संचालन करते हैं. जिससे प्रत्यक्ष रूप से राजनेताओं का नाम सामने नहीं आता है.
बता दें कि मिलावट का खेल बड़े पैमाने पर किया जाता है. इसके लिए केरोसीन में फिनायल मिला के पैट्रोल तैयार किया जाता है. जिसकी कीमत चालीस से पचास रूपए होती है. फिर इसे टैंकरों के ड्राइवरों से सेटिंग कर के सही पेट्रोल निकाल कर ये मिलावटी केरोसीन मिला दिया जाता है. जिससे मिलावटखोरों को काफी फायदा होता है. वहीं इस खेल में टैंकर के ड्राइवर से लेकर पंप के कर्मचारी तक मिले होते हैं.
इस मिलावट से जहां एक ओर मिलावटखोरों को फायदा होता है वहीं दूसरी ओर ग्राहकों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है. ग्राहकों को ज्यादा कीमत पर मिलावटी पेट्रोल खरीदना पड़ता हैं वहीं इस मिलावटी पेट्रोल से ग्राहकों के वाहन भी खराब होते हैं जिन्हें सुधरवाने का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है.