राजस्थान रिसर्जेंट पर पड़ सकती है ग्रहण की छाया
सोने के अंडे देने वाली खान आवंटन प्रणाली पर राज्य की भ्रष्टाचार विरोधी विभाग की टीम की अंदरखाने चल रही निगरानी का ही नतीजा था कि लगभग बीस करोड़ की रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ हो पाया। विभाग को 16 सितम्बर को खनन विभाग के अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत की कॉल रिकॉर्डिंग के जरिए इस महारिश्वत काण्ड का सुराग लगा।
ललित मोदी काण्ड की स्याही ठीक से धुल ही नहीं पायी थी कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बार पुन: एक खान घोटाले की लपेट में आ गयी हैं। जहां वसुंधरा राजे अपनी ललित मोदी मामले से धूमिल हुई छवि को साफ़ करने के लिए अपने एक अति उत्साही निवेश प्रोग्राम- राजस्थान रिसर्जेंट को लेकर दिन रात एक किये हुए थी कि अचानक सिंघवी खान घोटाले के बादल बरस पड़े, जिसने इस बहु प्रचारित कार्यक्रम को संदेह के घेरे में ले लिया है। उन्नीस एवं बीस नवम्बर, 2015 को होने वाले राजस्थान रिसर्जेंट समिट के माध्यम से दुनियां भर के निवेशकों के जयपुर में होने वाले सम्मलेन से वसुंधरा ने लगभग तीन लाख करोड़ का निवेश पाने का लक्ष्य रखा था। परन्तु अब विश्लेषकों को लगता है कि गत माह के सिंघवी खान घोटाले ने इस पर ग्रहण की कालिमा फेर दी है। हालांकि वसुंधरा राजे ने अभी भी अपनी अति उत्साही योजना को सफल बनाने में कोई हार नहीं मानी है और लगातार प्रयत्न जारी हैं। अभी 16 अक्टूबर को राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री राजे, केंद्रीय खनन एवं इस्पात मंत्री नरेंदर सिंह तोमर तथा केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री पीयूष गोयल की हाजिरी में विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों तथा निजी कंपनियों के साथ प्रदेश में खनन एवं ऊर्जा क्षेत्र में पचास हज़ार करोड़ से अधिक के तेरह एमओ यू हस्ताक्षरित किये हैं। इससे पूर्व तेरह अक्टूबर को भी केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकेटा नायडू की उपस्थिति में बारह हज़ार करोड़ के एमओयू साइन किये थे। बार-बार केंद्रीय नेताओं की उपस्थिति स्पष्ट दर्शाती है कि राजे अपनी छवि सुधारने को कितनी आतुर है। परन्तु सिंघवी खान घोटाले की छाया के कारण सरकार को दस बड़ी कंपनियों के साथ खनन क्षेत्र में करार करने से हाथ खींचना पड़ा है ताकि खान घोटाले के ग्रहण से राजस्थान रिसर्जेंट समिट को कुछ हद तक बचाया जा सके। नतीजन सरकार को दस हज़ार करोड़ रुपये कम के एमओयू साइन करने पड़े। उल्लेखनीय है कि श्री सीमेंट, इमामी सीमेंट, वंडर सीमेंट तथा लाफार्ज सीमेंट कंपनियों को दिसम्बर 2014 में खान आवंटित की गई थीं, जिसके कारण ये कंपनिया शक के दायरे में आ गयी हैं। इनके इलावा छह अन्य कंपनियों के साथ भी एमओयू नहीं हो पाया जिनकी केंद्र सरकार से अभी अनुमति नहीं आ पाई है। इसलिए इस मुद्दे के जानकार लोगों का मानना है कि सिंघवी खान घोटाले का असर राजस्थान रिसर्जेंट की सफलता पर अवश्य ही पड़ेगा।
क्या है सिंघवी खान घोटाला?
सोने के अंडे देने वाली खान आवंटन प्रणाली पर राज्य की भ्रष्टाचार विरोधी विभाग की टीम की अंदरखाने चल रही निगरानी का ही नतीजा था कि लगभग बीस करोड़ की रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ हो पाया। विभाग को 16 सितम्बर को खनन विभाग के अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत की कॉल रिकॉर्डिंग के जरिए इस महारिश्वत काण्ड का सुराग लगा, जिसके सहारे खान घोटाले के कथित मगरमच्छ खान विभाग के प्रमुख सचिव आईएएस अशोक सिंघवी पकड़ में आ पाए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर सबसे पहले कथित बीस करोड़ की रिश्वत की प्रथम किश्त के ढाई करोड़ की राशि लेते हुए पंकज गहलोत को हिरासत में लिया गया। गहलोत की हिरासत के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल नवदीप सिंह तथा आई जी पुलिस दिनेश एमएन ने मुख्यमंत्री को गोपनीय जानकारी देकर अशोक सिंघवी को गिरफ्तार करने की अनुमति लेकर हिरासत में ले लिया।
आरोप है कि मात्र 72 दिनों के भीतर एक नवम्बर, 2014 से लेकर 12 जनवरी, 2015 के मध्य पहले आओ पहले पाओ के आधार पर केंद्र सरकार के निर्देशों के विपरीत खान विभाग के प्रमुख सचिव अशोक सिंघवी के कार्यकाल में एक लाख बीघा की बहुमूल्य 653 खान निजी व्यक्तियों व कंपनियों को बंदरबांट कर दी गयी। हालांकि, राजे सरकार ने विपक्ष के हो हल्ले के बाद 17 अक्टूबर को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आवंटित 601 खनन पट्टों को निरस्त कर दिया है तथा राज्यपाल से सिफारिश करके लोकायुक्त से जांच के आदेश भी करवा लिए हैं? परन्तु प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इस से संतुष्ट नहीं है और वह सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर से मिलकर सीबीआई जांच की मांग कर चुकी है। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट का कहना है कि सरकार द्वारा 601 खानों के आवंटन को रद करना स्पष्ट दर्शाता है कि खानों का आवंटन गलत था। उन्होंने आरोप लगाया है कि वसुंधरा सरकार ने इस आवंटन के जरिये केंद्र के निर्देशों के विरुद्ध अपने चहेतों को 653 खान आवंटन करके प्रदेश को पेंतालिस हज़ार करोड़ रुपये की चपत लगाई है। पायलट ने इस पूरे प्रकरण की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग की है और कहा है कि मुख्यमंत्री राजे को तुरंत नैतिक आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिए।
उधर, भारतीय जनता पार्टी के राज्य अध्यक्ष अशोक परनामी ने सरकार का बचाव करते हुए कहा है कि हमें नहीं पता कांग्रेस किन 653 खानों की बात कर रही है। हमने सभी 601 आवंटित खानों की लीज रद कर दी है तथा लोकायुक्त को जांच सौंप दी है। उन्होंने कांग्रेस पर भी डबल स्टैण्डर्ड अपनाने का आरोप लगाया है। परनामी का कहना है कि कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अपने मुख्यमंत्री काल में जोधपुर स्टोन पार्क में अपने भाई भतीजों को एक-एक हेक्टेयर की सैंड स्टोन खानें बांटी थी, जो बाद में विधान सभा में विवाद उठाने के कारण रद करनी पड़ी थी । परनामी ने गहलोत पर अशोक सिंघवी को बचाने का आरोप भी लगाया है। उन्होंने कहा है कि हिंदुस्तान जिंक को गलत तरीके से खान आवंटन प्रकरण में राज्य के भ्रष्टाचार विरोधी विभाग ने वर्ष 2011 में अशोक सिंघवी के खिलाफ जांच की थी। जांच में, एसीबी ने इस मामले में सरकार को 600 करोड़ रुपये के नुकसान पहुंचाने के आरोप सिंघवी पर लगाए थे, परन्तु गहलोत सरकार ने उस समय एसीबी जांच को दबाकर इसे विभागीय जांच के दायरे में रख दिया था।
आखिर किस का वरद हस्त है सिंघवी के सर पर?
यदि भाजपा सरकार व उसकी मुख्यमंत्री व मंत्री बेक़सूर हैं तो क्यों सरकार कांग्रेस की सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग को स्वीकार नहीं कर लेती। क्यों नहीं भाजपा सरकार अपने दोनों कार्यकालों तथा बीच के कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान हुई सभी खान आवंटन की अनियमितताओं की सीबीआई से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराकर कांग्रेस को भी कटघरे में खड़ा कर देती?
उठते सवाल
अशोक सिंघवी पिछली सरकार में भी खान सचिव रहे हैं तथा इस कार्यकाल में भी भाजपा सरकार की वापसी के बाद फिर खान विभाग में प्रमुख सचिव बना दिया गया। आखिर क्यों? जब भाजपा के अध्यक्ष परनामी यह आरोप लगाते हैं कि भाजपा के इन दोनों कार्यकालों के बीच की अवधि में वर्ष 2011 में कांग्रेस के कार्यकाल में सिंघवी ने सरकार को 600 करोड़ का कथित नुकसान पहुंचाया था तथा अशोक गहलोत ने एसीबी की जांच को विभागीय जांच में तब्दील कर दिया था, तो क्यों भाजपा सरकार संदिग्ध कार्यशैली के अधिकारी को महत्वपूर्ण पद पर बार- बार लाती रही है?
मात्र 72 दिनों के भीतर एक नवम्बर, 2014 से लेकर 12 जनवरी , 2015 के मध्य पहले आओ पहले पाओ के आधार पर केंद्र सरकार के निर्देशों के विपरीत खान विभाग के प्रमुख सचिव अशोक सिंघवी के कार्यकाल में एक लाख बीघा की बहुमूल्य 653 खान निजी व्यक्तियों व कंपनियों को बंदरबांट कर दी गयी।