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राफेल डील में एक नया मोड़, अब फ्रांस के NGO ने की जांच की मांग

राफेल डील पर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा और इस मामले में अब नया ट्विस्ट आ गया है. फ्रांस के एक एनजीओ ने पूरी डील पर नए सिरे से जांच की मांग की है और इसके लिए उसने शिकायत भी दर्ज कराई है.

राफेल डील में एक नया मोड़, अब फ्रांस के NGO ने की जांच की मांगफ्रांस की एंटी करप्शन एक एनजीओ ने शिकायत दर्ज कराते हुए देश के वित्तीय अभियोजक ऑफिस में भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल डील में कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग की है. पेरिस में सितंबर, 2016 में राफेल डील पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन फ्रेंच राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बीच करार हुआ था जिसमें भारत ने 36 राफेल विमान खरीदने का सौदा किया. यह डील करीब 58 हजार करोड़ रुपए की गई थी.

पूर्व राष्ट्रपति के बयान के बाद गरमाया मामला

पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने पिछले दिनों एक साक्षात्कार में यह कहकर विवाद पैदा कर दिया था कि पूरे डील में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को शामिल करने के मामले में फ्रांस की कोई भूमिका नहीं थी. उनके इस बयान के बाद भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया और विपक्ष लगातार केंद्र से इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग कर रहा है.

फ्रेंच न्यूजपोर्टल मीडियापार्ट की रिपोर्ट के अनुसार, शेरपा (Sherpa) नाम के एक एनजीओ ने डील को लेकर नए सिरे से जांच की मांग की है. यह एनजीओ भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ काम करता है.

एनजीओ ने राफेल डील को लेकर की गई इस शिकायत में पूर्व मंत्री और एंटी करप्शन वकील की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सीबीआई में दाखिल अधिकारों के दुरुपयोग और अनुचित फायदा पहुंचाने के आरोपों का हवाला दिया है. साथ ही शेरपा ने मीडियापार्ट और खुद की जांच से निकले सुबूतों को भी आधार बनाया है.

एनजीओ का कहना है कि उसे उम्मीद है कि देश का वित्तीय अभियोजक ऑफिस इस डील से जुड़े फैक्ट्स की गंभीरता से जांच करेगा. साथ ही वह भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के बारे में भी पड़ताल करे.

मीडियापार्ट के अनुसार, शेरपा ने दसॉ के भारतीय ऑफसेट सहयोगी अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप को शामिल किए जाने के मामले पर जांच की मांग की है. एनजीओ ने कहा कि रिलायंस के पास फाइटर जेट बनाने का कोई अनुभव नहीं है और करार फाइनल किए जाने से महज 12 दिन पहले इस कंपनी को रजिस्टर्ड कराया गया.

हालांकि यह साफ नहीं है कि जांच की मांग पर वित्तीय अभियोजक ऑफिस ने काम शुरू किया है या नहीं. वहीं फ्रांस की सरकार और दसॉ ने ऐसे किसी घोटाले से इनकार किया और आरोपों को बेबुनियाद बताया.

कांग्रेस कर रही हमला

दूसरी ओर, राफेल डील को लेकर भारत में राजनीति गरमाई हुई है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस लगातार केंद्र की मोदी सरकार पर डील में बड़े घोटाले के नाम पर हमला कर रही है. कांग्रेस का आरोप है कि यूपीए शासनकाल में दसॉ के साथ 126 राफेल जेट को लेकर डील हुई थी.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस समय विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी मुद्दा बनाते हुए इसे अपनी रैलियों में जमकर उठा रहे हैं. राहुल का आरोप है कि मोदी सरकार ने HAL से करार छीनकर 30 हजार करोड़ रुपये अनिल अंबानी की जेब में डाल दिए. राहुल के इन्हीं आरोपों पर अब दसॉ एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने बयान दिया है. ट्रैपियर ने राहुल के आरोपों को सिरे से नकार दिया. उन्होंने कहा कि रिलायंस डिफेंस को इस डील के लिए केवल 850 करोड़ रुपये के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट मिलेंगे, ना कि 30 हजार करोड़.

प्रशांत भूषण ने लगाए कई बड़े आरोप

सुप्रीम कोर्ट में पिछले दिनों वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पहले इस डील में 108 विमान भारत में बनाने की बात की जा रही थी. 25 मार्च 2015 को दसॉ और HAL में करार हुआ और दोनों ने कहा कि 95 फीसदी बात हो गई है. लेकिन 15 दिन बाद ही प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के समय नई डील सामने आई, जिसमें 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की बात पक्की हुई और मेक इन इंडिया को किनारे कर दिया गया.

इस डील के बारे में रक्षा मंत्रालय को भी पता नहीं था. एक झटके में विमान 108 से 36 हो गए और ऑफसेट रिलायंस को दे दिया गया. उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि उन्हें ऑफसेट पार्टनर का पता नहीं है, लेकिन प्रोसेस में साफ है कि बिना रक्षामंत्री की अनुमति के ऑफसेट तय नहीं हो सकता है. ऑफसेट बदलने के लिए सरकार ने नियमों को बदला और तुरंत उसे लागू किया.

प्रशांत भूषण ने कहा कि इस डील के लिए रिलायंस को ही क्यों चुना गया? उसके पास तो जमीन भी नहीं थी, रिलायंस फॉर्मूला का ही पार्ट थी. 17 दिन के अंदर ही रिलायंस को जमीन, डिफेंस मैन्यूफेक्चरिंग का लाइसेंस दिया गया. उन्होंने कहा कि दो सरकारों के बीच एग्रीमेंट इमरजेंसी के हालात में होता है, लेकिन अभी कोई ऐसी स्थिति नहीं है.

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