नई दिल्ली : मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस पिछले कुछ महीनों से एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राफेल डील पर घेरने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने डील में दखल देकर राफेल विमान बनाने के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट बिजनसमैन अनिल अंबानी को दिलाने में मदद की। इस आरोप पर देश की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण और मोदी कैबिनेट के मंत्री अरुण जेटली जवाब दे चुके हैं, लेकिन कांग्रेस यह मुद्दा अभी छोड़ती नहीं दिख रही है। लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, इस सवाल पर मंथन तेज हो रहा है कि क्या राफेल विवाद से मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में नुकसान होगा या नहीं। ऑनलइन मेगा पोल में जब यह सवाल लेकर हम अपने पाठकों के बीच गए, तो हमें काफी साफ जवाब मिला। टाइम्स मेगा पोल में हिस्सा लेने वाले तीन-चौथाई 74.59 प्रतिशत यूजर्स का मानना है कि राफेल विवाद का लोकसभा चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 17.51 प्रतिशत लोग मानते हैं कि मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में इस विवाद का खामियाजा उठाना पड़ेगा। 7.9 प्रतिशत यूज़र्स ऐसे भी हैं, जो राफेल मुद्दे पर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं। सरकार के काम को आंकने वाले इस पोल में मोदी सरकार फर्स्ट डिविजन से पास हुए हैं। 11 से 20 फरवरी के बीच हुए पोल में 5 लाख से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था। इनमें से 59.51% ने मोदी सरकार के कार्यकाल को बहुत बढ़िया बताया। पुलवामा में हुए आतंकी हमले से पहले राफेल डील का विवाद भारत में सबसे हॉट टॉपिक था। कई राजनीतिक विश्लेषक इसके नफा-नुकसान गिना रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राफेल विवाद से नरेंद्र मोदी सरकार का वैसा ही नुकसान होगा, जैसा बोफोर्स विवाद से राजीव गांधी की सरकार को हुआ था। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस राफेल मुद्दे को लाइफलाइन की तरह इस्तेमाल कर रही है, क्योंकि उसके पास बीजेपी को घेरने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है। राफेल विवाद का एक आर्थिक पहलू भी है। इसकी कीमत वगैरह के आधार पर ऐनालिसिस करने वाले कुछ ऐक्सपर्ट मानते हैं कि राफेल जैसे मुद्दे आम वोटर से बहुत कनेक्ट नहीं हो पाते हैं। हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा हमारी सात अन्य भाषाओं (गुजराती, मराठी, बंगाली, कन्नड़, तेलुगू, तमिल और मलयालम) की 13 प्रॉपर्टीज़ के संपादकों ने सबसे पहले 10 सवाल तय किए, जिनके जवाब से देश के मूड का अनुमान लगाया जा सके।
11 फरवरी को हम अपने सवालों के साथ अपने रीडर्स के बीच गए और 20 फरवरी तक उनकी राय ली। इस दौरान 5 लाख से भी ज्यादा लोगों ने अपनी राय व्यक्त की। हालांकि, हमने उन्हीं रीडर्स के जवाबों को पोल में शामिल किया, जो लॉग-इन यूजर्स थे। अपने ऑपिनियन पोल को पूरी तरह निष्पक्ष रखने के लिए हमने कई कदम उठाए। मसलन, पोल में हिस्सा लेने वाले रीडर्स के पास पोल की अवधि यानी 11 से 20 फरवरी के दौरान रिजल्ट जानने का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं था। अक्सर ऐसे पोल में दिलचस्पी रखने वाली पार्टियां पोल के साथ खिलवाड़ की कोशिश करती हैं। पोल की मियाद के बीच बॉट्स के जरिए वोटिंग कराई जा सकती है। इससे बचने के लिए हमने यह अनिवार्य कर दिया कि राय दर्ज करने वालों को साइन-इन जरूर करना होगा। इसी तरह यह भी सुनिश्चत किया गया कि एक व्यक्ति एक बार ही वोट कर पाए। हमारी 13 वेबसाइट्स में से किसी भी एक साइट पर पोल करने के बाद हमारी किसी अन्य वेबसाइट के जरिए दोबारा वोटिंग करना संभव नहीं था। इसके बावजूद हम इस बात से वाकिफ हैं कि यह पोल सिर्फ ऑनलाइन ऑडियंस के लिए था और इसके परिणाम सभी वर्ग के भारतीयों मतदाताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। हालांकि, हमें भरोसा है कि पोल में हिस्सा लेने वाले लोग मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोगों के बीच इंटरनेट की बढ़ती पहुंच और नौ भाषाओं की अपनी प्रॉपर्टीज के बूते हमने सुनिश्चित करने की कोशिश की कि हमारा सैंपल साइज सबसे विविध और विशाल हो।