सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट से 36 राफेल विमान सौदे में किसी तरह की जांच की संभावना को नकारते हुए कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच से मना कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 8.7 बिलियन डॉलर की रक्षा डील में किसी तरह की अनियमितता नहीं पाई है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे कहा जा सके कि सरकार ने किसी निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए फ्रांस के साथ समझौता किया.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से केन्द्र सरकार को राहत मिली है और विपक्ष की सीबीआई जांच कराने की मांग को खारिज कर दिया गया है. इस फैसले के बावजूद भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुए इस सौदे पर कई अनुत्तरित सवाल हैं जिनका जवाब न तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मिला और न ही इन सवालों का कोई जवाब सरकार से मिलने की उम्मीद है.
पार्टनर चुनने पर सवाल?
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उसे राफेल डील में ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला है जिसके आधार पर कहा जा सके कि केन्द्र सरकार ने दसॉल्ट समझौते में रिलायंस को फायदा पहुंचाने का काम किया. कोर्ट में केन्द्र सरकार ने कहा है कि दसॉल्ट से करार में ऑफसेट पार्टनर चुनने का दारोमदार फ्रांस की कंपनी के पास था. लेकिन सवाल यह है कि जब भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुई इस डील में दसॉल्ट के लिए यह जिम्मेदारी छोड़ी गई तब किस आधार पर भारत सरकार की एविएशन इकाई एचएएल एक ऐसी कंपनी से पिछड़ गई जिसने एविएशन क्षेत्र में कदम करार के बाद रखा.
ऑफसेट क्लॉज फ्रांस-भारत डील का हिस्सा?
इस डील के साथ ही भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच समझौता किया गया था कि डील से दसॉल्ट को हुई कुल कमाई का आधा हिस्सा कंपनी को एक निश्चित तरीके से वापस भारत में निवेश करना होगा. डील के इस पक्ष को ऑफसेट क्लॉज कहा गया. लिहाजा, डील के तहत दसॉल्ट को यह सुनिश्चित करना था कि वह 8.7 बिलियन डॉलर की आधी रकम को वापस भारत के रक्षा क्षेत्र में निवेश करे. लिहाजा, निवेश जब इस पैसे से होना था और ऑफसेट क्लॉज भारत-फ्रांस सरकार की डील का हिस्सा है तक यह निवेश भारत में 3 दशक से एविएशन में काम करने वाली कंपनी की जगह ऐसी कंपनी में हुआ जिसकी नींव करार के बाद रखी गई.