राम मंदिर के लिए आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने देशभर में निर्णायक जन आंदोलन खड़ा करने की बात कही है। उन्होंने फैसले में देरी के लिए कोर्ट पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि इंसाफ में देरी अन्याय के बराबर है।
नागपुर: अयोध्या में शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के होने और विश्व हिंदू परिषद की धर्मसभा के चलते आज वहां माहौल गर्म है। इस बीच, 900 किमी दूर नागपुर से आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने भी राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की है। विश्व हिंदू परिषद की हुंकार रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने साफ कहा कि अब धैर्य नहीं निर्णायक आंदोलन का वक्त आ गया है। कोर्ट पर निशाना साधते हुए भागवत ने कहा कि न्यायपूर्ण बात यही होगी कि जल्द मंदिर बने, लेकिन यह कोर्ट की प्राथमिकता में नहीं है तो सरकार सोचे कि मंदिर बनाने के लिए कानून कैसे आ सकता है।
‘लड़ाई नहीं पर अड़ना होगा’
RSS चीफ ने कहा, ‘लेकिन सावधान! यह अपनी मांग है। आज लड़ाई नहीं है लेकिन अड़ना तो है। जन सामान्य तक यह बात पहुंचानी जरूरी है कि सरकार इसके लिए कानून बनाए और जनता का दबाव आएगा तो सरकार को मंदिर बनाना ही होगा। फिर एक बार संपूर्ण भारतवर्ष को मंदिर के लिए खड़ा होना है। जो चित्र और मॉडल हमने सामने रखा है उसी के हिसाब से मंदिर बनना चाहिए। देश में जागरण का काम चले जब तक मंदिर निर्माण का काम शुरू न हो जाए।’
सुप्रीम कोर्ट पर सीधा निशाना
उन्होंने कहा, ‘मामला कोर्ट में है, फैसला जल्द दिया जाना चाहिए। यह साबित भी हो गया है कि मंदिर वहां था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस केस को प्राथमिकता में नहीं रख रहा है। उन्होंने कहा कि इंसाफ में देरी अन्याय के बराबर है।’
‘जनहित के मामले टालने का अर्थ नहीं’
भागवत ने कहा कि वर्षों से मांग कर रहे हैं लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। कोर्ट की प्राथमिकता में यह नहीं है। जनहित के मामले टालते रहने का कोई अर्थ नहीं है। नीचे मंदिर था, यह खोदकर देखा जा चुका है। निर्णय आ गया कि मंदिर तोड़ कर ढांचा बना था। सत्य और न्याय को अगर आप टालते चले गए और टालते ही रहना है तो मेरी एक प्रार्थना है कि justice delayed is justice denied, यह संस्थानों में सिखाना नहीं चाहिए, इसे निकाल देना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज केवल कानून से नहीं चलता। श्रद्धा पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। कोर्ट का निर्णय अभी आएगा नहीं, क्योंकि वह प्राथमिकता में नहीं है। राम के समय में कोई वक्फ बोर्ड, अखाड़ा नहीं था। अपने तलवार के बल पर उस स्थान को जबरन अधिकार में लिया गया और मंदिर को गिराया गया। ऐसे में सरकार पर मंदिर के लिए दबाव बनाना ही होगा।
भागवत ने बताया, मंदिर की मांग क्यों?
भागवत ने कहा कि कभी-कभी यह सवाल आता है कि मंदिर की मांग क्यों कर रहे हैं? तो यह मांग न करें तो कौन सी मांग करें। हमारा भारत स्वतंत्र देश है इसलिए यह मांग करते हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने अपनी किताब ‘राम कृष्ण और शिव’ में कहा है कि भारतीय समाज जीवन का वस्त्र जो प्राचीन समय में बुना गया, उसके उत्तर-दक्षिण धागे को श्री राम ने पिरोया, पूर्व-पश्चिम धागे को श्री कृष्ण ने पिरोया और भगवान शिव तो इस पूरे समाज के मन में छा गए हैं। RSS चीफ ने कहा कि अयोध्या में राम की जन्मभूमि है जो एक ही होती है, दूसरी नहीं होती है। जब तक हम स्वतंत्र नहीं थे, हम चुप थे पर अब अपने मालिक बन गए हैं तो हमनी अपनी चीजों को बिठाया। पहला काम सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।
‘बाबर को मुसलमानों से जोड़ना गलत’
भागवत ने कहा कि राम मंदिर बनना किसी के विरोध की बात नहीं है अपने ‘स्व’ की बात है। अयोध्या का मंदिर बाबर के सेनापति ने ढहाया। उन्होंने कहा कि बाबर कौन था? कुछ लोग बाबर को मुसलमानों से जोड़ते हैं, यह गलत बात है। बाबर ने भारत पर चढ़ाई की और सैतपुर नामक जगह पर उसने कत्लेआम किया। तब सैतपुर में आदिगुरु नानकदेव जी मौजूद थे। गुरुवाणी में गुरुनानक देव ने लिखा है कि पाप की बारात लेकर बाबर आया और उसने ऐसा कत्लेआम मचाया कि न हिंदू की न मुसलमान की शर्म रही धर्म रही। उन्होंने कहा कि जो उनको भगवान मानते हैं, पूजा करते हैं और जो उन्हें भगवान नहीं मानते हैं वे भी अपने देश की मर्यादा का प्रतीक मानते हैं इसीलिए मोहम्मद इकबाल ने भी राम को इमाम-ए-हिंद कहा।