दस्तक-विशेषस्तम्भ

राम मंदिर बनाम राजनीति

फिरोज बख्त अहमद : कुछ समय पूर्व अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद्, शिवसेना, भाजपा, धर्मसंसद आदि के कार्यकर्ता एकत्र हुए कि राम जन्म भूमि पर एक भव्य राम मंदिर बनाने के कार्यक्रम का आयोजन करेंगे। हालांकि इस संबंध में किए गए पूजा पाठ आदि का शन्तिपूर्वक प्रचार एवं संचार किया गया, लेकिन धर्म संसद के साधुओं ने राम मंदिर निर्माण न किए जाने का ठीकरा भाजपा के सर फोड़ दिया कि वह अध्यादेश नहीं ला रही कि जिसके कारण राम मंदिर का निर्माण किया जाए। हां इतना अवश्य कहना होगा कि पिछली 25 नवंबर में अयोध्या में जो भी कुछ हुआ, वह बड़ा शांतिमय एवं सौहार्दपूर्ण शैली से किया गया। उसमें, उस प्रकार का झगड़ा फसाद, साधुओं पर आक्रमण या बाबरी मस्जिद काण्ड ऐसा कोई प्रकरण नहीं हुआ, यहां शाबाशी देना होगा भाजपा को कि 2018 हालात सरकार के काबू में थे बनिस्तत 6 दिसंबर 1992 के कि जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे और उनकी आंखों के सामने मस्जिद विध्वंस हुआ। यहां जनता पीठ ठोंकना चाहेगी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कि उनके राज में इस प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई कि जो नरसिम्हा राव के दौर में देखने में आई। दुनिया यह भी देख रही है कि इन दिनों जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और 2019 के लोक सभी चुनाव भी अधिक दूर नहीं है तो मंदिर-मस्जिद को लेकर गरमाव भी कुछ हद तक बढ़ा है। उधर, भाजपा की मजबूरी का लाभ उठाकर विपक्ष ने यह सिरा पकड़ लिया है कि संघ को राम मंदिर की याद चुनाव से पूर्व ही आती है। जहां कांग्रेस के वशिष्ठ नेता कमल नाथ ने सत्ता में आने के लिए, मुस्लिमों से 90 प्रतिशत मतदान कांग्रेस पार्टी के हक में करने को कहा है, उसका नतीजा यह हुआ कि संघ की ओर से यह पांसा फेंका गया कि न केवल वह राम मंदिर का निर्माण करेगा बल्कि मथुरा एवं वाराणसी की मस्जिदों पर भी मंदिरों की स्थापना होगी। हालांकि इससे पूर्व संघ का स्टैण्ड यह था कि राम मंदिर की स्थापना के बाद किसी और मस्जिद की डिमाण्ड नहीं की जाएगी और यही नहीं बल्कि सरयू नदी पर, बाबरी मस्जिद का पुनरनिर्माण भी करा दिया जाए। मगर जब कांग्रेस के अकल से पैदल नेता जैसे कमल नाथ सांप्रदायिक राजनीति का पिटारा खोलेंगे तो ‘संघ’ कैसे पीछे रह सकता है। कांग्रेस के ही एक पूर्व मित्र शहजाद पूनावाला के अनुसार कमल नाथ ने भी शायद खाकी, निक्कर पहनी हुई है क्योंकि उनके मुसलमानों द्वारा कांग्रेस को 90 प्रतिषत वोट देने की बात से कुछ हद तक बिखरा हुआ हिन्दू वोट इकट्ठा हो रहा है। यह बड़ी बदकिस्मती की बात है कि भारत में धर्म और आस्था को लेकर पागलपन की हद तक दीवाने हो रखे हैं। वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस ने उनके अपने मीर जाफर और जयचंद छिपे हुए हैं। वस्तुतः मंदिर-मस्जिद मुद्दे ने जोर तब पकड़ा जब दिल्ली के विज्ञान भवन में, एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख, मोहन भागवत ने सरकार से कहा कि वह कानून बना करराम मंदिर के निर्माण के मार्ग को प्रशश्त करे। पाठकों को यह भी पता होगा कि बीती 29 अक्टूबर से सर्वोच्च न्यायालय में राम मंदिर के मुद्दे पर सुनवाई होनी थी, जिसमें जनभावना यह थी कि सर्वोच्च न्यायालय इस मुद्दे को रोजाना सुनवाई कर प्राथिमिकता के साथ निपटाएगा, मगर लोगों को तब भारी निराशा हुई, जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर सुनवाई शुरू होते ही बिना किसी कारण के, सुनवाई को जनवरी 2019 तक के लिए स्थगित कर दिया।

वास्तव में मंदिर के सिलसिले में, भाजपा की विडम्बना यह रही कि जब कुछ समय पूर्व, उस समय के न्यायाधीश जस्टिस केहर सिंह ने आदेश दिया था कि इस मामले को शांतिपूर्ण ढंग से न्यायालय के बाहर निपटा लिया जाए। उस समय यदि सरकार अध्यादेश ले आती या कमर कस लेती तो हिंदू-मुस्लिम समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों के एक कमेटी बनाकर, अपनी देख-रेख में मंदिर निर्माण प्रारम्भ करा देती। भाजपा सरकार ने यह सुनहरी मौका गंवा दिया। बिल्कुल सही अंग्रेजी कहावत है, आॅपच्र्युनिटी नाॅक्स एट दा डोर वनली वन्स, अर्थात किस्मत मात्र एक बार ही आपका दरवाजा खटखटाती है। लेखक आज तक यह नहीं समझ सका कि आखिर सरकार ने उस समय मंदिर का निर्माण क्यों नहीं किया। लेखक के इस प्रश्न का उत्तर कांग्रेस का नेता, दिग्विजय सिंह ने दिया कि मंदिर का मुद्दा सनातन धर्मियों के लिए दिल से जुड़ा हुआ जज्बाती मुद्दा है और अगर मंदिर निर्माण हो गया तो आगे संघीय सत्ता के दरवाजे बंद हो जाएंगे। लेखक के निकट यह एक गलत सोच है क्योंकि अगर भाजपा लम्बी दौड़ का घोड़ा बनना चाहती है और मोदी जी अगले 20 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहना चाहते हैं, तो उन्हें 2018 के अंत और 2019 की शुरूआत में मंदिर निर्माण कराना ही होगा, जो लोग सोच रहे हैं कि 2019 के चुनाव से पूर्व यदि मोदीजी मंदिर निर्माण नहीं कराएंगे, तो प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे, बिल्कुल गलत है, क्योंकि आज मोदीजी का बदल भारत में है ही नहीं और विपक्ष जो एकजुट होकर, मोदीजी को हराकर सत्तासीन होने के सपने संजो रहा है, ऐसे सपने देखने में कोई बुराई नहीं मगर सच्चाई यह है कि यह मुंगेरीलाल के हसीन सपने ही होंगे। बावजूद नोटबंदी, जीएसटी, बेरेाजगारी आदि के आज भी भाजपा अपने आधारों पर बड़ी मजबूती से कायम है क्योंकि ये समस्याएं तो पिछले 70 वर्ष से ही रही हैं। इन समस्याओं का निदान करने के लिए जनता को अभी मोदी को कम से 10 वर्ष का समय और देना होगा क्योंकि जो ईमानदारी और भारत के प्रति ममत्व, मोदी के मस्तिश्क में मौजूद है वह, राहुल बाबा, ममता दीदी, मायावती दीदी, चंद्र बाबू नायडू, सीएसआर, कैप्टन अमरिंदर सिंह, पिनाराई विजयन, अखिलेेश यादव, तेजस्वी यादव के अंदर नहीं। हां यह हो सकता है कि 2019 में भाजपा की उतनी सीटें नहीं आईं कि जितनी 2014 में आई थीं, मगर हां सरकार भाजपा ही बनाएगी भले ही अपने बूते पर बनाए या एनडीए के सहारे बनाए क्योंकि विपक्ष के जो लोग एक साथ प्लेटफार्म पर आ रहे है, ये सब वही हैं कि जिनमें से किसी की भी विचारधारा एक दूसरे से नहीं मिलती, सिवाए इसके कि प्रधानमंत्री मोदी की गद्दी कब जानी है, जोकि ऐसा मुद्दा है किसी के गले नहीं उतरता।

एक अन्य विडम्बना यह है कि मोदीजी की देखा-देखी, राहुल बाबा भी अब उनकी मंदिरों का भ्रमण करने लगे हैं, अपने जनेऊ और गोत्र का जिक्र भी करने लगे हैं, जिसमें कश्मीरी और इटालियन जाफरान की मिलावट है। यदि राहुल बाबा इसी रास्ते पर चलते रहे तो न तो उन्हें मुस्लिमों का 90 प्रतिशत वोट मिलेगा और न ही उन्हें हिन्दुओं की सहानुभूति प्राप्त होगी, क्योंकि इसे राहुल की घटिया वोट बैंक सियासत के रूप में देखा जाएगा, बल्कि देखा जा रहा है। समय है कि अब मोदी भारत के वरिष्ठ हिन्दू एवं मुस्लिम धर्म गुरुओं, विद्वानों, कानूनदानों आदि की कमेटी बनाए, अध्यादेश लाएं और भव्य राम मंदिर का निर्माण करें, जिसमें सिवाए ओवैसी एवं आजम खां जैसे लोगों को छोड़कर एक सामान्य मुस्लिम उनका साथ देने को आज भी तैयार हैं और हर समय तैयार रहेगा क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को वह बकौल शायर-ए-मश्रिक डाॅ. सर मुहम्मद इकाबल, इमाम-ए-हिंद मानता है-
”है राम के वजूद पर हिंदोस्तां को नाज
कहते हैं उसे अहल-ए-नजर ही इमाम-ए-हिंद”

 

 

 

 

 

 

 

 

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार एवं मौलाना आजाद के पौत्र हैं)
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