शास्त्रों में शिवलिंग का पूजन सबसे ज्यादा पुण्यदायी और फलदायी बताया गया है। रावण के साथ युद्ध करने से पहले भगवान श्री राम ने भी पार्थिव शिवलिंग का पूजन किया था और उसके बाद लंका पर विजय प्राप्त की थी।
जबकि शनिदेव ने अपने पिता सूर्य से अधिक शक्ति प्राप्त करने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान महादेव की साधना की थी।
भय से मुक्ति और मोक्ष का माध्यम
सनातन परंपरा में जितने भी देवताओं की पूजन विधियां है, उसमें पार्थिव पूजन के द्वारा शिव की साधना-अराधना ही सबसे आसान और अभीष्ट फल देने वाली है। कलयुग में मोक्ष की प्राप्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पार्थिव पूजन सबसे उत्तम माध्यम है। इस पूजन से सभी प्रकार के भय दूर हो जाते हैं।
करोड़ों यज्ञों के बराबर है पार्थिव पूजन
पार्थिव शिवलिंग का पूजन करने से करोड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है। भगवान शिव सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं और उनकी साधना का यह सबसे सरल-सहज और पावन माध्यम है। जिसके पास कुछ भी नहीं वह शुद्ध मिट्टी का पार्थिव शिवलिंग बनाकर महज बेल पत्र, शमी पत्र आदि अर्पित कर उनकी कृपा प्राप्त कर सकता है।
दो मासों में अधिक पुण्यदायी है पार्थिव पूजन
देवों के देव महादेव की साधना-अराधना के लिए श्रावण मास और पुरुषोत्तम मास (मलमास) विशेष रूप से फलदायी माने जाते हैं। इन दोनों पावन मास में पार्थिव शिवलिंग निर्माण को दूसरी पूजा-अर्चना के मुकाबले इसलिए विशिष्ट माना जाता है क्योंकि साधक बगैर किसी पंडित या पुरोहित के स्वयं एक शिल्पकार की भांति शिवलिंग का निर्माण करता है। पावन पार्थिव शिवलिंग की पूजा-अर्चना कर मोक्ष का अधिकारी बनता है।
ऐसे बनाते हैं पार्थिव शिवलिंग
पंचतत्वों में भगवान शिव पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं, इसलिए उनकी पार्थिव पूजा का विशेष विधान है। पार्थिव लिंग एक या दो तोला शुद्ध मिट्टी लेकर बनाते हैं। इस लिंग को अंगूठे की नाप का बनाया जाता है।भोग और मोक्ष देने वाले इस पार्थिव पूजन को किसी भी नदी, तालाब के किनारे, शिवालय अथवा किसी भी पवित्र स्थान पर किया जा सकता है।