राष्ट्रपति भवन में नहीं होगी इफ्तार पार्टी
नई दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस बार इफ्तार पार्टी नहीं देंगे। इस बार ही क्या जब तक वे राष्ट्रपति हैं तब तक राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी नहीं होगी। राष्ट्रपति भवन के पब्लिक रिलेशन महकमे के मुताबिक राष्ट्रपति ने निर्देश दिया है कि राष्ट्रपति भवन चूंकि पूरे देश के लिए धर्मनिरपेक्ष भाव रखता है इसलिए इसमें धर्म विशेष से जुड़े किसी भी आयोजन को मंजूरी नहीं दी जाएगी। फिर चाहे वह इफ्तार पार्टी हो या फिर किसी अन्य धर्म या समुदाय से जुड़ा कोई दूसरा कार्यक्रम। राष्ट्रपति कोविंद का मत है कि ऐसे आयोजनों पर देश के करदाताओं का पैसा खर्च करना सही नहीं होगा। इस तरह इस बार राष्ट्रपति भवन इफ्तार पार्टी नहीं देगा। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं होगा। पूर्व में राष्ट्रपति कलाम ने भी अपने कार्यकाल के दौरान इफ्तार पार्टियों पर रोक लगा दी थी। वर्ष 2002 से 2007 के बीच राष्ट्रपति भवन में इफ्तार की दावत नहीं दी गयीं। दरअसल राष्ट्रपति कलाम इफ्तार की दावत पर होने वाले खर्च को निर्धन, बेसहारा बच्चों की शिक्षा के लिए दान कर देते थे। बता दें कि राष्ट्रपति भवन में क्रिसमस के दौरान कैरल सिंगिंग और रमजान के दौरान इफ्तार दावत का आयोजन बरसों से चला आ रहा है। हालांकि किसी अन्य धर्म /समुदाय के त्योहारों से सम्बंधित दूसरे कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में पहले ही नहीं होते। ऐसे में अब कम से कम रामनाथ कोविंद के कार्यकाल के दौरान ये दोनों कार्यक्रम नहीं होंगे यह तय माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इफ्तार की पार्टी नहीं देते हैं। यही नहीं जबसे वे प्रधानमंत्री बने हैं उन्होंने राष्ट्रपति भवन की इफ्तार पार्टी में कभी भी हिस्सा नहीं लिया। दिलचस्प ढंग से जिन प्रणब मुखर्जी के लिए आज राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने पलक-पांवड़े बिछा रखे हैं पिछले साल उनकी ही बतौर राष्ट्रपति आखिरी इफ्तार पार्टी में मोदी सरकार का एक भी मंत्री शामिल नहीं हुआ था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ही तरह हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने भी राजभवन पहुंचते ही अंग्रेजों के जमाने के कुछ दस्तूर बदल डाले थे। राज्यपाल देवव्रत ने हिमाचल राजभवन में मौजूद मधुशाला को बंद करवा दिया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने राजभवन में होने वाले लंच-डिनर में मांसाहारी व्यंजन परोसे जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। दरअसल देश में इफ्तार पार्टियों की सियासत लम्बे अरसे से चली आ रही है। शुरुआत निश्चित तौर पर रमज़ान और रोजा रखने वालों के प्रति सम्मान के रूप में हुई थी लेकिन धीरे-धीरे बड़े नेताओं की इफ्तार पार्टियों से आम आदमी गायब हो गया। ले-देकर यह आयोजन सियासी समीकरणों के बनने बिगड़ने का पैमाना बनकर रह गया।