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राष्ट्रीय एकता और गरीबों का कल्याण चाहते थे पं. दीनदयाल उपाध्याय

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के सूत्रधार और जनसंघ के संस्थापक रहे पं. दीनदयाल उपाध्याय की आज यानी 25 सितंबर को जयंती है।

25 सितंबर, 1916 को मथुरा के नगला चंद्रभान गांव में जन्मे दीनदयाल के ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन को भाजपा का वैचारिक सूत्र माना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी भी अकसर अपने भाषणों में उनका नाम लेते रहे हैं और कई योजनाएं भी उनके नाम पर चलाई गई हैं। महज 3 साल की उम्र में मां और 8 साल की आयु में पिता का साया उठने के बाद ननिहाल में पले-बढ़े दीनदयाल उपाध्याय का शुरुआती जीवन बेहद कठिनाइयों भरा था। महज 21 साल की आयु में ग्रैजुएशन के दौरान ही वह आरएसएस के संपर्क में आए थे। नानाजी देशमुख और भाई जुगाड़े के साथ ‘संघ’ का काम करने वाले दीनदयाल उपाध्याय ने 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर जनसंघ की स्थापना की थी। दीनदयाल उपाध्याय को मूल्यों और सिद्धांतों की राजनीति के लिए जाना जाता है। 1963 के लोकसभा उपचुनाव में जौनपुर सीट से उतरने दीनदयाल उपाध्याय को हार का सामना करना पड़ा था। चुनावी राजनीति में यह उनकी पहली और आखिरी हार थी। कहा जाता है कि इस चुनाव में जनसंघ के नेता जातिगत समीकरणों को साधते हुए प्रचार करना चाहते थे, लेकिन उपाध्याय ने इससे इनकार किया, भले ही उन्हें पराजय झेलनी पड़ी। राजनीति में अवसरवाद और सिद्धांतहीनता के वह हमेशा खिलाफ रहे।

दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद राष्ट्रीय एकता और गरीबों के कल्याण का सिद्धांत देता है। उनके दर्शन को गांधीवाद और समाजवाद के बीच का रास्ता भी कहा जाता है। दिसंबर, 1951 में कानपुर में जनसंघ के पहले अधिवेशन में वह महासचिव बने थे और इसके बाद दिसंबर 1967 तक वह महासचिव रहे। 29 दिसंबर, 1967 से 10 फरवरी 1968 तक वह जनसंघ के प्रेजिडेंट रहे। हालांकि अध्यक्ष बनने के महज 43 दिन बाद उनका निधन हो गया। 11 फरवरी, 1968 की सुबह एक रेलवे कर्मचारी ने उत्तर प्रदेश के मुगलसकाय रेलवे स्टेशन पर एक शव देखा था। उसने यह सूचना स्टेशन मास्टर को दी। जांच के बाद पता चला कि वह किसी आम शख्स का नहीं बल्कि दीनदयाल उपाध्याय का शव था। उनके नाम पर ही अब मुगलसराय जंक्शन का नाम अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया है।

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