राहुल गांधी को डूबती नाव बचानी है…!
म.प्र. में बदल सकता है निजाम
राहुल गांधी बड़ी ऊर्जा से लवरेज होकर कांग्रेस में अध्यक्ष बने हैं वो 13 साल से सियासत में जमे हुये हैं। वो इन्दिरा जी की तरह सफल भी हो सकते हैं अगर कांग्रेस अध्यक्ष का पद बारह घोड़ों वाला रथ न बना हुआ होता, जिसमें ज्यादातर लोग मणीशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, जनार्दन द्विवेदी जैसे ही ज्यादा हैं जो न सिर्फ नादान हैं वो मतलबी, चापलूस व सत्ता की नाव में मौजमस्ती करने वाले माने जाते हैं। कम लोग एन्टोनी साहब जैसे ईमानदार सादगी पसन्द हैं। कम लोग ही मनमोहन सिंह जैसे कांग्रेस में बच पाये हैं। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि लोग काफी बेहतर हैं जो राहुल की टीम में काम कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में आ सकती है, यदि प्रत्याशी बेहतर उतारे जायें और राहुल को गुजरात चुनावों के दौरान जैसे मणीशंकर या कपिल जैसे कलाकार उन्हें पगबाधा न पहुंचायें। कांग्रेस में जहां गांधी नेहरू विचारधारा वाले कार्यकत्ताओं की बड़ी फौज है वहीं सत्ता लोलुप कलाकार भी काफी मात्रा में हैं जो नेतृत्व को अंधेरे में रखकर सिर्फ मौज मस्ती में डूबा रहता है, पद पाकर घरों में सोता रहता है। बस सिर्फ अपने गुट के नेता को शक्ल दिखाने, रेल्वे स्टेशन या हवाई अड्डे पर आता जाता है। उसे जनता से कुछ खास लेना देना नहीं होता। कुछ सामंत भी अभी अपनी सामंती शैली छोड़ना नहीं चाहते। पार्टी में अपनी सम्पत्तियों को बचाने में लगे रहते हैं। अशोक गहलोत जैसे लोग उनके पास कम ही हैं। सचिन पायलेट जैसे युवा भी कुछ कम ही हैं।
राहुल गांधी बहुत भोले और शरीफ इंसान हैं। जब उनके पिता मद्रास में आतंकवादी हिंसा में शहीद हुये थे तब वो अगले दिन ही उनके एक सुरक्षा दल के उपनिरीक्षक के घर उनके परिवार को दिलासा देने तक जा पहुंचे थे। वो संवेदनशील व ट्रांस्पेंसी चरित्र वाले हैं। उनकी शालीनता सभी ने देखी है। वो करें तो क्या करें, इन्दिरा जी के बाद कांग्रेस में विचारधारा तो लगभग खत्म सी हो गई थी। ऊँची जाति के लोगों ने, मतलबी लोगों ने राजीव गांधी को घेरकर सांसदों व केन्द्रीय मंत्री के पद तो पा लिये थे पर उन्होंने आम जनता के लिये, कांग्रेस संगठन के लिये, गांधी नेहरू विचारों के लिये, धर्म निरपेक्षता के लिये कुछ खास नहीं किया। दलित पिछड़ों अल्पसंख्यकों की तरफ नहीं देखा। नतीजा बिहार व उत्तर प्रदेश के लालू, नीतिश, शरद यादव व मुलायम सिंह ने कांग्रेस का वोट बैंक अपनी तरफ कर 20 सालों से उसे केन्द्रीय सत्ता के लिये उसे बैसाखी पर चलने पर मजबूर कर दिया। सोनिया गांधी भी विचारधारा के लिये गांधी विचारों के लिये कुछ खास नहीं कर पायीं। कांग्रेस उन्होंने जरूर बचा ली, सत्ता के लिये प्रधानमन्त्री की कुर्सी भी उन्होंने नहीं ली पर सिर्फ उससे या एन्टोनी, माधवराव सिंधिया, अर्जुन सिंह, कैप्टन अमरिन्दर जैसे लोग उनके साथ वफादारी से जरूर लगे रहे पर इतने बड़े देश में इतने लोगभर काफी न थे। धीरे-धीरे सत्ता लोभी लोग कांग्रेस को घेरते रहे। सोनिया जी स्वयं काफी कुछ करती जरूर रहीं पर धर्म निरपेक्ष कांग्रेसी छवि बरकरार नहीं रह सकी। राम मंदिर मुद्दा भी राजीव गांधी ने सही ढंग से नहीं डील कर पाया। साहबानो मुद्दा भी ढंग से नहीं डील हो पाया और कांग्रेस पर तुष्टिकरण का ठप्पा लगता रहा। 20-25 साल में कांग्रेस का जन आधार घटता गया।
राहुल गांधी को डूबती नैया कहें या खंडहर हुये बंगले को पुन: निर्माण करना होगा। उन्हें अपनी निडर व शोम्य छवि बनाये रखने हेतु चमचागिरी करने वालों को किनारे लगाना ही पड़ेगा वरना अच्छे रिजल्ट आ पाना मुश्किल ही नहीं असंभव भी लगता है। उन्हें महाराष्ट्र में पुन: दलितों का नेतृत्व बढ़ाना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश व बिहार जहां कांग्रेस करीब करीब गायब जैसी है, पुन: उसका ताना बाना ठीक करना होगा। गुजरात में जिस निडरता से उन्होंने टूटी-फूटी हताश कांग्रेस को इस चुनावों में खड़ा कर अच्छी सफलता पा ली। वो एक बड़ी राहुल जी की उपलब्धि मानी जा रही है। देश के अन्य विपक्षी दलों में ममता, लालू, अखिलेश यादव, वाम दल आदि उन्हें विपक्षी एकता में नेता मानने को तैयार भी हैं। मोदी लोकप्रिय जरूर हैं पर वो शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य से ज्यादा पाकिस्तान, औरंगजेब की बातें कर असल विकास के मुद्दों से जनता का ध्यान बांटने की कलाकारी करते दिखाई देते हैं। संघ परिवार का सम्प्रदायिक एजेन्डा आज लागू करने में मोदी कुछ सफल जरूर हुये हैं पर ये आगे चलने वाला नहीं है। वो भ्रष्टाचार की बात भी अब नहीं करते जिसमें उनके पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के बेटे का नाम ही ऊपर है, भ्रष्टाचार की बात करने में भा.ज.पा. इसलिये भी चुप हो जाती है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह व छत्तीसगढ़ में रमन सिंह व उनके बेटों पर व्यापमं घोटाला, चावल घोटाला, पनामा लीक में इनके नाम दर्ज हैं। राहुल गांधी से कांग्रेस और देश को बड़ी उम्मीदें हैं। उधर गुजरात चुनावों में उनकी आक्रामकता व शालीनता से मोदी व संघ परिवार भी काफी चिंतित है। उत्तरी मध्य प्रदेश में भगवान सिंह यादव, अशोक सिंह, प्रद्युम्न सिंह तोमर आदि सक्रियता से जनता से जुड़कर कांग्रेस में सक्रिय हैं सागर आदि में।
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)