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रिक्‍शा चालक ने उकेरी समाज की पीड़ा, पुस्‍तक मचा रही धूम

अमृतसर,। एक रिक्शा चालक पूरे दिन कमर तोड़ मेहनत कर अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में जुटा रहता है। उसकी सोच बस इसी में सीमित रहती है। लेकिन, यदि कोई रिक्‍शा वाला विचार और सोच को काेरे कागज पर उकेर सामाजिक ढांचे और जीवन की विसंगतियों काे जीवंत करे तो उसे आप क्‍या कहेंगे। रचनाधर्मी रिक्‍शाचालक या कुछ और…।  अमृतसर के छेहरटा के रहने वाले राजबीर सिंह ऐसे ही रिक्‍शा चालक हैं। जीवन की पीड़ा को झेलते हुए राजबीर ने मानवीय वेदना को दर्शाती पुस्‍तक ‘रिक्‍शे पर जिंदगी’ की रचना कर लोगों को सोचने पर विवश कर दिया है।

रिक्‍शा चालक ने उकेरी समाज की पीड़ा, पुस्‍तक मचा रही धूम

दसवीं पास राजबीर ने अपनी पुस्तक में सामाजिक ढांचे का सजीव चित्रण कर उस पर प्रहार किया है। राजबीर  लेखक कैसे बना इसकी दिलचस्प कहानी है। दरअसल, राजबीर रिक्‍शे पर बैठने वालों से संवाद करते रहते थे। इसी संवाद के दौरान लोगों की पीड़ा को उन्‍हाेंने समझा। इसके साथ ही गरीबी की मार से दबे व्‍यक्ति के तौर पर उन्‍हें समाज के उलाहनों और झिड़की का भी उन्‍हें सामना करना पड़ा था। …और  इस पीड़ा ने  उनके अंतर्मन को इस कदर झकझोरा और उन्‍हें कलम का धनी बना दिया। 

राजबीर कहते हैं, रिक्शे पर बैठने वाले हर व्यक्ति से मैं बातें करता था। इस दौरन लोग अपने बारे में कई जानकारियां देते। कुछ वर्ष पूर्व एक बुजुर्ग दंपती उसके रिक्शे पर बैठा। बुजुर्ग महिला ने पूछा कि कहां रहते हो तो मैंने बताया, छेहरटा में। महिला ने कहा कि मेरा बेटा भी गांव में रहता था, लेकिन नशे ने उसे निगल लिया। महिला के साथ बैठा उसका पति बिल्कुल खामोश था। उसकी खामोशी देखकर मुझे अहसास हुआ कि जिस इंसान ने अपने जवान बेटे की अर्थी को कंधा दिया हो, वह बाहर से तो चुप है, लेकिन अंदर ही अंदर घुटता होगा।

राजबीर ने बताया कि पुस्तक में ‘रुख है तां मनुष्य है, नन्हीं छांव, किधर जा रही है संग, शर्म अते सादगी, साडे देश विच्चो भ्रष्टाचार कदों खत्म होवेगा, दूध नाल पुत्त पाल के अज्ज पाणी नूं तरसदीयां मावां आदि अध्‍याय के तहत समाज के विभिन्‍न पहलुओं को दर्शाया गया है।

इसी माह इस पुस्‍तक का विमोचन तत्कालीन आइजी कुंवर विजय प्रताप सिंह किया। सबसे खास बात यह है कि यह पुस्तक पटियाला के पंजाबी यूनिवर्सिटी अौर अमृतसर के प्रसिद्ध खालसा कॉलेज की लाइब्रेरी में भी विद्यमान है। राजबीर की कलम से निकले शब्दों के कारण उन्हें कई साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मान से नवाजा है।
   
पिता बीमार हुए तो चलाना शुरू किया रिक्शा१राजबीर ने बताया कि मेरे पिता भगवान सिंह भी रिक्शा चालक हैं। जब मैं १८ साल का था, पिताजी बीमार हो गए। अस्पताल में दाखिल करवाया। परिवार का मुखिया बीमार हो गया तो रोटी के लाले पड़ने लगे। ऐसे में उसने पिता का रिक्शा थाम लिया। बचपन से ही उन्हें लिखने और पढ़ने का शौक था। पढ़ाई छूट गई, लेकिन लिखना जारी रखा। रिक्शे पर चलती जिंदगी की रफ्तार आज भी वैसे ही है। लोग रिक्शे पर बैठते हैं। अपनी बात करते हैं और मैं उसे एक कागज पर लिख लेता हूं। राजबीर के अनुसार पुस्तक खरीदने वालों से प्राप्त राशि का दसवां हिस्सा किसी जरूरतमंद को दूंगा। १पुस्तक की ४०० प्रतियां बिकीं १राजबीर ने इस पुस्तक की एक हजार प्रतियां छपवाई थीं। इनमें से ४०० बिक चुकी हैं। सोमवार को रंजीत एवेन्यू पहुंचे राजबीर को देखकर रंजीत एवेन्यू में रहने वाले हरमीत सिंह ढिल्लों पहुंचे। उन्होंने राजबीर की किताब के बारे में फेसबुक पर देखा था। ढिल्लों ने राजबीर को २०० रुपये देकर किताब खरीदी। ढिल्लों का पूरा परिवार रिक्शा चालक राजबीर के इर्द-गिर्द खड़ा था। किताब लेते समय ढिल्लों की आंखें नम हो गईं। उन्होंने अपने बच्चों को सीख दी कि इंसान से प्यार करो।
 
पिता बीमार हुए तो चलाना शुरू किया रिक्शा

राजबीर कहते हैं, मेरे पिता भगवान सिंह भी रिक्शा चालक थे। मैं 18 साल का था तो पिताजी बीमार हो गए। अस्पताल में दाखिल करवाया। परिवार का मुखिया बीमार हो गया तो रोटी के लाले पड़ने लगे। ऐसे में पिता का रिक्शा थाम लिया।

राजबीर ने बताया कि बचपन से ही उन्हें लिखने और पढ़ने का शौक था। पढ़ाई छूट गई, लेकिन लिखना जारी रखा। रिक्शे पर चलती जिंदगी की रफ्तार आज भी वैसे ही है। लोग रिक्शे पर बैठते हैं। अपनी बात करते हैं और मैं उसे एक कागज पर लिख लेता हूं। राजबीर ने कहा, पुस्तक खरीदने वालों से प्राप्त राशि का दसवां हिस्सा किसी जरूरतमंद को दूंगा।

पुस्तक की सैकड़ों प्रतियां बिकीं

राजबीर ने इस पुस्तक की एक हजार प्रतियां छपवाई थीं। इनमें से 400 बिक चुकी हैं। सोमवार को रंजीत एवेन्यू पहुंचे राजबीर को देखकर रंजीत एवेन्यू में रहने वाले हरमीत सिंह ढिल्लों पहुंचे। उन्होंने राजबीर की किताब के बारे में फेसबुक पर देखा था। ढिल्लों ने राजबीर से उनकी किताब खरीदी। ढिल्लों का पूरा परिवार रिक्शा चालक राजबीर के इर्द-गिर्द खड़ा था। किताब लेते समय ढिल्लों की आंखें नम हो गईं। उन्होंने अपने बच्चों को सीख दी कि इंसान से प्यार करो। 

 
 

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