उत्तराखंड सरकार के रिवर्स पलायन के दावे के बीच कुछ उत्साही युवा हैं, जो अपने स्तर पर लगातार इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ खुद रिवर्स माइग्रेशन किया, बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर दूसरे युवा भी गांवों की ओर लौटने लगे हैं। मशरूम लेडी दिव्या रावत, गोट फार्मर श्वेता तोमर, डेयरी फार्मर हरिओम नौटियाल जैसे युवा प्रदेश में चंद रुपयों के लिए अपना घर-बार छोड़ने वाले लोगों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं।
रंजना ने सुनी मन की बात
रुद्रप्रयाग के गांव भीरी की रंजना रावत दिल्ली स्थित मल्टी नैशनल कंपनी में क्वॉलिटी ऑफिसर की जॉब कर रही थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम से प्रभावित होकर उन्होंने नौकरी छोड़ स्वरोजगार अपनाने का फैसला किया। आज रुद्रप्रयाग जिले में रंजना का नाम बागवानी, कृषि, मशरूम उत्पादन और फल संरक्षण के लिए जाना जाने लगा है। मात्र 24 साल की रंजना अब तक सैकड़ों लोगों को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग देकर स्वावलंबी बना चुकी हैं।
टूरिस्ट विलेज के लिए काम
टिहरी गढ़वाल जिले के विपिन पंवार 1998 में साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद नौकरी के लिए दिल्ली चले गए। तब से वे गुड़गांव और दिल्ली में ही जॉब कर रहे थे। लेकिन उत्तराखंड में खाली होते गांवों की पीड़ा महसूस कर उन्होंने गांव में ही कुछ करने की ठानी। उन्होंने मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेकर गांव में इसकी शुरुआत कर दी है। गांव को टूरिस्ट विलेज बनाने की दिशा में भी वे काम कर रहे हैं।
पौड़ी गढ़वाल के गांव सिड़ियाधार, पोखरा के विज्ञान वैभव नौटियाल के गांव को लोग भूतिया गांव कहते हैं। लेकिन अब 30 साल के वैभव ने भी देहरादून में नौकरी छोड़ गांव में रहने का फैसला किया। वैभव ने मशरूम और वैज्ञानिक तरीके से फल-सब्जियों का उत्पादन शुरू किया।