लक्ष्मण ने लोकपाल से कहा—भारतीय क्रिकेट की सेवा करने के लिए सीएसी में गया
नई दिल्ली : बीसीसीआई की क्रिकेट सलाहकार समिति (सीएसी) के सदस्य रहते हुए इंडियन प्रीमियर लीग की टीम सनराइजर्स हैदराबाद के मेंटॉर बनने पर हितों के टकराव के मुद्दे पर पूर्व बल्लेबाज वी.वी.एस. लक्ष्मण ने बोर्ड के लोकपाल के सामने अपना पक्ष रखा है। लक्ष्मण ने लोकपाल डी.के. जैन से कहा है कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट की सेवा करने के लिए सीएसी में पदभार संभाला था और वह किसी तरह से हितों के टकराव के जंजाल में शामिल नहीं होना चाहते थे। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया के कार्यकाल के दौरान 2015 में सीएसी का गठन किया गया था जिसमें सचिन तेंदुलकर, वी.वी.एस. लक्ष्मण और सौरभ गांगुली को शामिल किया गया था। लक्ष्मण ने अपने वकील द्वारा लिखे गए पत्र में कहा है कि संन्यास के बाद भी वह भारतीय क्रिकेट में सेवाएं देना चाहते थे और इसी कारण सीएसी में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा है कि वह ऐसी स्थिति में नहीं पडऩा चाहते थे जहां उनकी मंशा पर सवाल खड़ा किया जाए। पत्र में लक्ष्मण ने कहा है, मैं इस कारण सीएसी में शामिल हुआ था कि हम भारतीय क्रिकेट को अपने अनुभव से आगे ले जा सकें। संन्यास के बाद भारत को क्रिकेट सुपर पावर बनाने के मौके ने मुझे इस प्रस्ताव को मंजूर करने के लिए प्रेरित किया था। जो आरोप लगाए गए हैं, वे आधारहीन हैं क्योंकि हम किसी भी खिलाड़ी और कोच का चयन नहीं करते हैं। साथ ही सीएसी एक स्थायी समिति नहीं है। लक्ष्मण ने अपने पत्र में प्रशासकों की समिति (सीओए) के साथ तालमेल की कमी की भी बात कही है। लक्ष्मण ने साथ ही कहा है कि सीओए ने सीएसी के तीनों सदस्यों को साफ तौर पर यह नहीं बताया था कि यह समिति काम कैसे करेगी। उन्होंने कहा, सात दिसंबर 2018 को हमने सीओए को पत्र लिखा जिसमें हमने अपील की थी कि वह हमें हमारी जिम्मेदारियों को साफ तौर पर बताए। अभी तक उसका कोई जवाब नहीं आया है। 2015 में जो आदेश हुआ था उसमें किसी भी तरह के कार्यकाल की बात नहीं कही गई थी। सीएसी अस्तित्व में है या नहीं, इस पर बात होनी चाहिए। पूर्व बल्लेबाज ने कहा कि वह शुरुआत में जिस तरह की जिम्मेदारी की उम्मीद कर रहे थे उस तरह का काम तीनों में से किसी को नहीं दिया गया और वह किसी भी तरह से चयनकर्ता नहीं थे। लक्ष्मण ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि सीएसी अस्तित्व में है या नहीं इसलिए वह हितों के टकराव के मसले में नहीं आते हैं।