लखनऊ : राजधानी लखनऊ की सड़कों पर इस साल 232 दिनों में अब तक 1001 हादसे हुए, जिनमें 381 लोगों की मौत हो गई। इन हादसों मे 627 लोग गम्भीर रूप से घायल हुए हैं। इनमें से कई अब भी बेड रिडन हैं। पिछले पांच वर्षों से तुलना करें तो यह आंकड़ा काफी ज्यादा है। गैरसरकारी संस्था शुभम् सोती फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, सड़कों पर मौजूद गड्ढों और तेज गति से गाड़ी चलाना मौत की वजह बन रहा है। नगर निगम और पीडब्ल्यूडी गड्ढा मुक्त सड़कें नहीं बना पा रहे हैं और पुलिस व ट्रैफिक पुलिस रफ्तार पर लगाम नहीं लगा पा रही है। अमौसी एयरपोर्ट के पास हाईवे पर गड्ढे के कारण हुए हादसे से रविवार को एक युवक की मौत हो गई।
दूसरी घटना में देर रात गोसाईंगंज में तेज रफ्तार ट्रक ने बाइक सवार दो युवकों को रौंद दिया। एनजीओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी सड़कें, जिन पर अधिकतम गति सीमा 60 किमी तय है, उन पर गड्ढे होना जानलेवा साबित हो रहा है। केंद्रीय सड़क सुरक्षा परिषद के सर्वे बताया गया था कि 2014 में यूपी में कुल 30,429 में से 11,415 सड़क हादसे टूटे-फूटे रास्तों पर हुए थे। इनमें 7,318 लोग घायल हुए और 6,558 की जान चली गई थी। इनमें अधिकतर हादसे पीक ऑवर्स में शाम छह से रात नौ बजे के बीच हुए। नैशनल हाईवे पर वाहनों की अनियंत्रित तेज रफ्तार के कारण प्रदेश भर में 8,367 हादसों में 5,503 लोगों की जान चली गई। न्यायिक अधिकारी राजर्षि शुक्ला के मुताबिक जाम में फंसने से किसी प्रकार का नुकसान होने, जैसे मीटिंग छूटना या बस-ट्रेन-फ्लाइट मिस होने पर उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। सड़कों पर गड्ढों में गिरकर चोटिल होने या कोई और दिक्कत होने पर उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। फोरम से पीड़ित को मुआवजा व दोषियों को आर्थिक दंड से जेल तक हो सकती है। फोरम के न्यायिक अधिकारी राजर्षि शुक्ला के अनुसार फोरम में आने के लिए वकील की आवश्यकता भी नहीं पड़ती, केवल सम्बंधित मामले के दस्तावेज होने चाहिए।
बढ़ते सड़क हादसे
वर्ष दुर्घटनाएं मौतें
2014 1303 646
2015 1393 662
2016 1519 652
2017 1539 642
2018 1001 381*
(*आंकड़े 15 अगस्त तक)