लड़की ने लिखी मार्मिक चिट्ठी, शर्मनाक बातें आई सामने
यहां की स्टाफ शिखा और जेबा बच्चों की झूठी शिकायतें अधीक्षिका रुपिंदर कौर से करती हैं। होली-दीवाली जैसे त्यौहारों पर लोग जो सामान दे जाते हैं, उसमें से हमें थोड़ा ही मिलता है।
बाकी सामान अधीक्षिका और स्टाफ रख लेते हैं। पिछली दिवाली लावा आया था, जिसमें कीड़ा लगा था। उसे किसी ने नहीं रखा। बड़े बच्चों ने खाने से मना किया तो छोटे बच्चों को जबरन खिलाया गया।
बड़ी लड़कियों ने जब कहा कि यह खाने से बच्चे बीमार पड़ जाएंगे तो, उन्हें डरा कर चुप करा दिया गया।� सुबह बच्चों के लिए आने वाले दूध में से दो पैकेट अधीक्षिका अपने लिए निकलवा लेती हैं।
सरकार की ओर से आने वाले अच्छी क्वालिटी के चावल को बदल कर घटिया चावल परोसा जाता है, उसमें भी अक्सर कीड़े निकलते हैं।
करीब 70 लोगों का खाना, जिस बर्तन में बनता है, उन्हें छोटी बच्चियों से साफ कराया जाता है। सफाई करवाई जाती है। बच्चे काम में ही व्यस्त रहते हैं, पढ़ नहीं पाते। लगातार फेल होने की यही वजह है।
यदि कोई बालिका मुंह खोलती है तो उसे जमकर डांट पड़ती है। अधीक्षिका कहती हैं कि कोई भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। आपसे निवेदन है कि किसी तरह किसी तरह अधीक्षिका और यहां के स्टाफ को बदल दीजिए। वह यहां रहते हुए पढ़ने और आगे बढ़ने नहीं देंगी। प्लीज, हम बच्चों की मदद कीजिए।
यह शोचनीय है कि एक तरफ सरकार हालात और समाज से परेशान बालिकाओं के� सुरक्षित भविष्य के लिए पैसा खर्च कर रही है, जबकि उसके नुमाइंदे बच्चों के मुंह से दूध और निवाला भी छीन ले रहे हैं।
इस दौरान बच्चियों ने आयोग अध्यक्ष जूही सिंह को अपनी पीड़ा बताते हुए यह चिट्ठी सौंपी है।� चिट्ठी पर 29 नवंबर 2015 की तारीख लिखी गई है और किसी मंत्री को लिखी गई।
समझा जा रहा है कि वे किसी बड़े अधिकारी या मंत्री के बालिका गृह दौरे के इंतजार में थीं ताकि उन्हें अपने हालात बता सकें। दुर्भाग्य से वहां कोई निरीक्षण करने ही नहीं पहुंच रहा।
अधीक्षिका रुपिंदर कौर, पिछले सात दिन से छुट्टी पर बताई जा रही हैं, लेकिन उनकी लीव एप्लीकेशन बालिका गृह के कार्यालय में नहीं मिली।
उनका दफ्तर सील कर दिया गया है। अब पहले वह आयोग के समक्ष पहला अपना पक्ष रखेंगी, उसके बाद ही कार्यालय जा सकती हैं।