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लड़की ने १०० रेपिस्ट से पूछा रेप करते हिये क्या चलता है दिमाग में, तो ये मिला जवाब

आज के समय में आधी अबादी के लिए सबसे बड़ी दुश्वारी है उनके खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा की घटनाएं। देश दुनिया हर जगह में ,सार्वजनिक स्थान से लेकर घरों तक में महिलाएं और बच्चियां सुरक्षित नही हैं। इसके लिए जहां तक हमारी लचर कानून व्यवस्था जिम्मेदार है उससे कहीं ज्यादे सामाजिक मानसिकता भी। ये सड़ी हुई सामाजिक मानसिकता है कि निर्भया के गुनाहगारों को अब तक अपने किए का पछतावा नहा है..ऐसे ही कई सारे रेप के अपराधी हैं जिनहें ये तक एहसास नही है कि उन्होंने कितने जघन्य कृत्य को अंजाम दिया है। ऐसे ही रेप की सज़ा काट रहे 100 कैदियों से मिल, एक लड़की ने वो हक़ीक़त बयां कि है जो हर शख़्स को पता होनी चाहिए।

लड़की ने १०० रेपिस्ट से पूछा रेप करते हिये क्या चलता है दिमाग में, तो ये मिला जवाब100 से अधिक कैदियों से मिल लड़की ने किया रेपिस्ट के बारे में चौकाने वाला खुलासा

26 साल की मधुमिता पांडे ने महज़ 22 साल की उम्र में दिल्ली के तिहाड़ जेल जाकर बलात्कार के ज़ुर्म में जेल की हवा खा रहे, कैदियों का इंटरव्यू किया और बीते तीन सालों में मधुमिता अब तक करीब 100 से अधिक कैदियों का इंटरव्यू कर चुकी हैं। मधुमिता ने कैदियों के ये इंटरव्यू अपनी पीएचडी थीसिस के लिए किया था । दरअसल साल 2012 में दिल्ली में सब निर्भया गैंगरेप की घटना हुई उस समय मधुमिता यूके के एक यूनिवर्सिटी से क्रिमिनलॉजी में पढाई कर रही थी और दिल्ली में आधी रात एक लड़की के साथ हुई, दरिंदगी की घटना ने मधुमिता को रेप के आरोपियों की मानसिकता पर रिसर्च करने के लिए मजबूर कर दिया।

असल में मधुमिता इन कैदियों का इंटरव्यू करके सिर्फ़ इतना जानना चाहती थी कि जब ये कैदी किसी भी महिला को अपना शिकार बना कर, बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं, उस वक़्त उनके मन में क्या चल रहा होता है,…. क्या ये कैदी आम इंसानों से अलग होते हैं, इनकी प्रवृति कैसी होती है? आख़िर ये लोग कैसे आसानी से एक पल किसी भी महिला की ज़िंदगी बर्बाद कर देते हैं?

जेल में बंद कैदियों को अपने किए का एहसास तक नही

कैदियों की मानसिकता जानने के लिए मधुमिता करीब एक सप्ताह तक उनके साथ तिहाड़ जेल में रही। मधुमिता बताती हैं कि ‘रेप के आरोप में बंद इन कैदियों से मिलने से पहले मैंने यही सोचा था कि ये लोग पक्का राक्षस प्रवृति के होंगे… लेकिन इन लोगों से मिलने के बाद कहीं से भी ये नहीं लग रहा था कि ये दुष्कर्म जैसी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं. स्वभाव से ये ठीक वैसे ही हैं, जैसे हम और आप. बस अगर हम में और इनमें किसी भी चीज़ का फ़र्क है, तो वो है ‘परवरिश’. मधुमिता आगे बताती हैं कि ‘जेल में बंद इन कैदियों को अहसास तक नहीं है कि इन्होंने रेप जैसी वारदात को अंजाम दिया है.’

मुधमिता कहती हैं कि भारत आज भी एक रुढिवादी देश है। कई स्कूलों में आज भी बच्चों को यौन शिक्षा से वंचित रखा जाता है। भारतीय माता-पिता कभी भी अपने बच्चों से सेक्स और यौन मसले पर खुल कर बात नहीं करते जबकि महिलाओं के प्रति कुंठित मानसिकता को खत्म करने के लिए यौन शिक्षा बेहद जरूरी है।

कैदियों पर किए गए मधुमिता की इस रिसर्च से यह बात तो साफ़ है कि वाकई अगर समाज में महिलाओं को प्रति हिंसा को कम करना है तो सख्त कानून व्यवस्था के साथ साथ सामाजिक मानसिकता में भी बदलाव लाना होगा। बच्चों मे यौन शिक्षा के साथ महिलाओं के प्रति सम्मान भी जागृत करना होगा ।

 

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