भोपाल : कहते हैं पुरानी आदत एक एक दम से नहीं जाती है.इसीलिए कहा गया है लागी छूटे ना. बता दें कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में वीवीआईपी संस्कृति खत्म करने के लिए प्रयत्नशील हैं, वहीं प्रदेश के मंत्री, राज्यमंत्री, सांसद, विधायक लालबत्ती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं. 19 अप्रैल को केंद्र सरकार ने कैबिनेट में गाड़ियों से लालबत्ती हटाने का फैसला लिया. मंत्रियों ने ताबड़तोड़ अपने वाहनों से लालबत्ती भी हटा दीं. लेकिन खुद को भीड़ से अलग दिखाने के लिए अब ये लाल बत्तियां विधायकों और मंत्रियों के बंगलों पर रातभर चमकती देखी जा सकती है.
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गौरतलब है कि प्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया, महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस, पशुपालन-मत्स्य विकास मंत्री अंतर सिंह आर्य, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ललिता यादव के बंगले पर लालबत्ती लगी हुई है. इसके अलावा 74 बंगला, चार इमली क्षेत्र में कई मंत्रियों ने बंगलों पर लालबत्ती लगा रखी है.आदिमजाति कल्याण मंत्री रहे ज्ञान सिंह सांसद निर्वाचित होने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन उनके बंगले बी-26, 74 बंगले पर लालबत्ती लगी है. ऐसे ही मनावर (धार) से भाजपा विधायक रंजना बघेल ने भी बंगले पर लालबत्ती लगा रखी है.
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बता दें कि मंत्रियों- विधायकों के बंगलों पर लगने वाली इन लाल बत्ती के संबंध में गृह विभाग के पूर्व सचिव एलके द्विवेदी ने कहा कि कोई घर में कौन से रंग की लाइट जलाता है, इसका कोई नियम नहीं है. कोई भी किसी भी रंग की लाइट लगा सकता है. लेकिन इस बारे में पूर्व आईपीएस अरुण गुर्टू की टिप्पणी काबिले गौर है. गुर्टू का कहना है कि प्रधानमंत्री ने लालबत्ती पर प्रतिबंध लगाकर संदेश दिया है कि कानून सबके लिए बराबर है. लोगों ने वाहनों से लालबत्ती हटा भी ली, लेकिन मानसिकता तो अभी भी सामंतवादी है. ये मानसिकता एकदम से नहीं जाएगी. प्रदेश में राजशाही रही है, यह उसका भी असर है. बात सिर्फ मंत्रियों तक सीमित नहीं है. ब्यूरोक्रेसी में भी ऐसी मानसिकता है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है. इसे रोकने के प्रयास होने चाहिए. कोई टोके तो सही.