नई दिल्ली। निगम,बोर्ड अध्यक्षों, उपाध्यक्षों व सलाहकारों को लालबत्ती और राज्यमंत्री का दर्जा बांटने का अधिकार मांगने के लिए उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने कहा है कि क्या यह परोक्ष रूप से नियम को खत्म करना नहीं है जो कहता है कि मंत्रिमंडल राज्य विधानसभा के कुल संख्या के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होगा। यह तो वही बात हो गई कि जिसे मंत्री नहीं बना पाए उसे मंत्री का दर्जा दे दिया। राज्य सरकार ने लालबत्ती और राज्यमंत्री का दर्जा बांटने पर रोक लगाने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने 18 दिसंबर, 2013 को लालबत्ती और राज्यमंत्री का दर्जा बांटने वाले उत्तर प्रदेश सरकार के 18 जुलाई, 2007 के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। कोर्ट ने उन लोगों को भी नोटिस जारी किया था, जिन्हें राज्य सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। हाई कोर्ट ने सभी पक्षकारों को जवाब प्रति जवाब दाखिल करने का समय देते हुए मामले को 2 माह बाद फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया था। 2 महीने की अवधि 18 फरवरी को पूरी होने की वजह से राज्य सरकार हड़बड़ी में है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि राज्यपाल का संविधान की तय प्रक्रिया के तहत मंत्री नियुक्त करना और राज्य सरकार द्वारा प्रशासनिक आदेश के जरिए मंत्री का दर्जा देना अलग-अलग है। राज्य सरकार की ओर से प्रशासनिक आदेश के जरिए दिया गया मंत्री का दर्जा संवैधानिक पद के समान नहीं है। हाई कोर्ट ने रोक आदेश देते समय इस अंतर पर ध्यान नहीं दिया है।