नई दिल्लीः राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव एक बार फिर अर्श से फर्श पर आ गए हैं। वर्ष 2005 के बाद जब 2015 में वह नीतीश के साथ महागठबंधन बनाकर सत्ता में लौटे थे, ताे कहा गया कि लालू की एक बार फिर बिहार की राजनीति में वापसी हो गई है। लेकिन सुशील माेदी के लालू परिवार पर लगातार खुलासे और बेटे तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने फिर से उन्हें सत्ता से दूर कर दिया। अब लालू न तो केंद्र और न ही किसी राज्य की सत्ता में हैं। इस समय उनका हाल बसपा सुप्रीमो मायावती जैसा हो गया है, जिनके पीछे भी लालू की तरह ही आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुरक्षा एजेंसियां पड़ी हुई थी। वह भी अब न ताे राज्य सरकार में हैं और राज्यसभा से भी इस्तीफा दे चुकी हैं।
बिहार में सत्ता इतनी जल्दी पलट जाएगी, शायद इसका अनुमान किसी काे भी न था। अभी कुछ दिन पहले जब मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया था, तब लालू ही थे, जिन्हाेंने उन्हें समर्थन देने का एेलान किया था। मायवती काे दिए अॉफर में उन्हाेंने कहा था कि अगर वह चाहे ताे बिहार से राज्यसभा जा सकती हैं। लेकिन अब खुद लालू के हाथ से ही सत्ता चली गई है। इसे समय का चक्र कहें या कुछ और लेकिन एक बात ताे सच है कि राजनीति में कब, किस पल क्या हाे जाए, काेई नहीं जानता।