वजूद के लिए फड़फड़ाती कांग्रेस की लौ को राहुल से करिश्में की उम्मीद
16 वीं विधानसभा में 28 सीटों से 17 वीं विधानसभा में दहाई से भी कम पर सिमटी
मोदी और योगी लहर में भी पश्चिम उप्र से जीतकर आए दो कांग्रेसी विधायक
-केपी त्रिपाठी
मेरठ। राहुल गांधी के देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष बनने के बाद से कांग्रेसी नेता फूले हुए घूम रहे हैं। मेरठ सहित पश्चिम उप्र के सभी जिलों में कांग्रेसियों ने राहुल गांधी के चित्र के मिठाई खिलाकर उसके बाद खुद मुंह मीठा किया। इस दौरान कांग्रेसियों की गुटबाजी भी उभर कर सामने आई। देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस के लिए मौंजू समय जरूर चिंतन का है। राहुल गांधी को ऐसे समय कमान मिली है जबकि कांग्रेस देश के हर कोने में चारों खाने चित हुई पडी है। खासकर जिस उप्र में कांग्रेस की तूती बोलती थी उस उप्र में तो कांग्रेस अपना पूरा वजूद ही खो चुकी है। पहले 2012 के लोकसभा चुनाव परिणाम और उसके बाद विधानसभा चुनाव की करारी शिकस्त के बाद देश के सबसे बड़े राज्य की आखिरी पायदान के चुनाव (निकाय चुनाव) में भी कांग्रेस सबसे नीचे पायदान पर रही। यानी निकाय चुनाव में भी कांग्रेसी कुछ खास नहीं कर पाए और रही सही साख भी गंवा बैठे। कांग्रेस के नए नरेश को यह ध्यान में रखना होगा कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटे हैं और दिल्ली की सत्ता का रास्ता इस प्रदेश से होकर गुजरता है। सत्तर से 90 दशक के बीच पश्चिम उप्र की सीटों पर कांग्रेस अहम जीत दर्ज करती आई थी। मेरठ, मुजफफरनगर, सहारनपुर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, हापुड, बिजनौर, बागपत, मुरादाबाद, रामपुर की लोकसभा और विधानसभा सीटों पर इसी पार्टी का वर्चस्व होता था।
समय ने बदली करवट तो दहाई के भीतर सिमटी कांग्रेस
लेकिन समय ने ऐसी करवट बदली कि 16 वीं विधानसभा में जिस पार्टी के 28 विधायक थे। 17 वीं विधानसभा में वह पार्टी दहाई का आंकडा भी न छू सकी। 17 विधानसभा में कांग्रेस के मात्र सात उम्मीदवार ही जीत दर्ज करने में सफल रहे। इनमें में भी दो पश्चिम उप्र से थे। जिनमें सहारपुर की बेहट सीट से नरेश सैनी और सहारनपुर देहात से मसूद अख्तर शामिल हैं। केंद्र में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में भूमिका निभाने वाली इस पार्टी को यह ध्यान में रखना होगा कि अगले आम चुनाव के बीच अब मुश्किल ही 18 महीने का समय बाकी बचा है।
पश्चिम उप्र में बनानी होगी भाजपा जैसी रणनीति
कांग्रेस को भाजपा की तरह राजनैतिक रणनीति बनानी होगी। भाजपा पिछले तीन चुनाव की शुरूआत पश्चिम उप्र से कर चुकी है। कांग्रेस के लिए भी पश्चिम उप्र काफी मुफीद जगह है अपनी नई पारी की शुरूआत करने के लिए। भाजपा ने बूथ लेवल तक अपनी पहुंच बनाने की शुरूआत और डोर-टू-डोर लोगों से सीधा संवाद की शुरूआत पश्चिम के जिलां से ही की थी। भाजपा जैसा प्रयोग करने में कांग्रेस नाकाम रही थी। लेकिन नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने ताजपोशी के बाद इस बात के संकेत दिए हैं कि वे जमीन से जुडे पुराने कांग्रेसी नेताओं से अनुभव साझा करेंगे।
दिल्ली बुलाए गए पुराने दिग्गज
कांग्रेस के पुराने नेता और एआईसीसी के सदस्य पंडित जयनरायण शर्मा ने बताया कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद से लग रहा है कि कार्यकर्ताओं में उत्साह आया है। रविवार को पार्टी मुख्यालय से उनके पास फोन आया और उन्हें सोमवार को दिल्ली पार्टी कार्यालय बुलाया गया है। उन्होंने बताया कि अब पुराने कांग्रेसी नेताओं को एकत्र किया जा रहा है। ऐसे पुराने कांग्रेसी दिग्गजों की सूची बनाई जा रही है। जिन्हें जिम्मेदारी दी जाएगी। गुजरात चुनाव के बाद उप्र संगठन में भारी फेरबदल होगे। पुराने कांग्रेसियों की वापसी के प्रयास किये जाएंगे और उन्हें जिम्मेदारियां दी जाएगी।