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वसंत पंचमी पर इस पूजा-विधि से प्रसन्न करें विद्या की देवी मां सरस्वती को…

वसंत पंचमी को वैदिक वांगमय में ऋतुमुख भी कहा गया है। साथ ही सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी यह जाना जाता है। इस दिन विषेश रूप से पुस्तक और लेखनी पूजा का भी विधान माना गया है। वैदिक काल में गुरुकुलों में दीक्षांत समारोह स्नातक ब्रह्मचारियों को त्रिवृत उपाधियां वसु, रुद्र और आदित्य नाम से देने की परंपरा रही है।

वसंत पंचमी 2020 कब है ?
वसंत पंचमी का पर्व बुधवार 29 जनवरी 2020 को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्ञान की देवी मां सरस्वती को समर्पित वसंत पंचमी का त्योहार प्रति वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 29 जनवरी को पड़ रही है।

वसंत पंचमी के दिन होता है त्रिवृत यज्ञ
इस दिन त्रिवृत यज्ञ का विधान है, जिसमें तीन अंग- देव पूजा, संगतीकरण और दान हैं। इसलिए वसंत उत्सव से यज्ञारंभ, विविध आयोजन, फैक्ट्री निर्माण, अध्ययन, संगीत, कला, विवाह, गृह-प्रवेश, पदभार, भवन आदि कार्य संपन्न किए जाते हैं। इस दिन हलवे की आहुतिया दें। गुड़ व घी मिश्रित अग्नि तथा पितृ देव को केसरयुक्त मीठे पीले चावल बनाकर पूजा करें।

वसंत पंचमी 2020 की पूजा विधि-
इस दिन सुबह उठकर शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करें और पीले वस्त्र पहनें।

अग्र भाग में गणेश जी और पीछे वसंत स्थापित करें।

नए धान्य से जौ, गेहूं आदि की बाली की पुंज को भरे कलश में डंठल सहित रखकर अबीर और पीले फूलों से वसंत बनाएं।

तांबे के पात्र से दूर्वा से घर या मंदिर में चारों तरफ जल छिड़कें और मंत्र पढ़ें-
प्रकर्तत्याः वसंतोज्ज्वलभूषणा नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता, वीणा वादनशीला च यदकर्पूरचार्चिता।
प्रणे देवीसरस्वती वाजोभिर्वजिनीवती श्रीनामणित्रयवतु।

पूर्वा या उत्तर की ओर मुंह किए बैठकर मां को पीले पुष्पों की माला पहनाकर पूजन करें।

गणेश, सूर्य, विष्णु, रति-कामदेव, शिव और सरस्वती की पूजा का विधान भी है।

वसंत पंचमी का धार्मिक महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं के वसंत में प्रकट होने की बात कही है। ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि ग्रंथों में कहा गया है कि इस दिन शिव ने पार्वती को धन और संपन्नता की देवी होने का आशीर्वाद दिया था। इसीलिए पार्वती को नील सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन संध्या वेला में 101 बार इस मंत्र का जाप इसीलिए उत्तम माना गया है- ऐं हृीं श्रीं नील सरस्वत्यै नमः।।

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