नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को जेल में बंद या पुलिस की हिरासत में चल रहे व्यक्ति को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने की एक याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि इससे ‘प्रतिशोध की राजनीति’ शुरू हो जाएगी। जेल में बंद में अनेक विधायकों एवं सांसदों को राहत देते हुए मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमन्ना और न्यायाधीश मनमोहन की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि इससे विचाराधीन और सजायाफ्ता व्यक्तियों को एकसमान अधिकार नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने कहा ‘‘हमारे विचार से जेल में बंद व्यक्ति के मताधिकार में कटौती को बढ़ाकर चुनाव में खड़े होने से प्रतिबंधित करने से सत्ताधारी दलों द्वारा ‘प्रतिशोध की राजनीति’ करने को बढ़ावा मिलेगा।’’ न्यायालय ने वकील एम. एल. शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका पर यह फैसला दिया। शर्मा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि पिछले वर्ष सितंबर में संसद द्वारा जन प्रतिनिधित्व कानून में किया गया संशोधन गैर संवैधानिक है तथा सिर्फ राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाने वाला है। न्यायालय ने हालांकि अपने फैसले में कहा कि राजनीति में अपराधीकरण के बढ़ने की संभावना के मद्देनजर जेल में बंद या पुलिस की हिरासत में चल रहे किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करना एक ऐसा उपाय होगा जो बीमारी से भी बदतर होगा।