विदेशी कर्ज का बढ़ता बोझ, कैसे पाकिस्तान को अर्थव्यवस्था से उबारेंगे इमरान खान?
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी पाकिस्तान नेशनल एसेंबली में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है और कयास लग रहा है कि पाकिस्तान की नई सरकार इमरान खान के नेतृत्व में बनने जा रही है. ऐसा हुआ तो पाकिस्तान की सत्ता इमरान खान के लिए कांटों भरा ताज साबित होने जा रहा है. कम से कम पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है.
पाकिस्तान के सामने असंख्य आर्थिक चुनौतियां खड़ी हैं लेकिन पीएमएल-एन की पूर्व सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान देश में आर्थिक गतिविधियों को तेजी देने में विफलता पाई है. यह विफलता पाकिस्तान की आर्थिक चुनौतियों को अधिक विकट कर देती हैं. क्योंकि पूर्व सरकार के कार्यकाल के दौरान वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अपने न्यूनतम स्तर पर रहीं. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर ब्याज दर बेहद नीचे रहे और पाकिस्तान की सरकार इन दोनों राहत के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में विफल हो गई.
इसी विफलता के चलते अब इमरान खान को वसीयत में पाकिस्तान का वह खजाना संभालने के लिए दिया जा सकता है जो दोनों विदेशी और घरेलू कर्ज के बोझ से दबा हुआ है. इसके अलावा असंतुलित व्यापार के चलते पाकिस्तान के सामने एक गंभीर बैलेंस ऑफ पेमेंट की समस्या खड़ी है जिसे संभालना नई सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है. वहीं आईएमएफ बेलआउट, खत्म होता विदेशी मुद्रा भंडार, चालू खाता और ट्रेड घाटा नई सरकार के नए वित्त मंत्री के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा.
गौरतलब है कि दिसंबर 2017 से लेकर इस साल मध्य जुलाई 2018 तक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान चार बार विमुद्रीकरण करते पाकिस्तानी रुपये की डॉलर के मुकाबले कीमत 21 फीसदी गिरा दी जिससे निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके.
वहीं 13 जुलाई तक पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार चार साल के निचले स्तर पर पहुंचकर 9 हजार मिलियन पर दर्ज हुआ. इस दौरान आयात 15 फीसदी बढ़ते हुए लगभग 60 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचा. इसके चलते वित्त वर्ष 2018 के दौरान पाकिस्तान का व्यापार घाटा 37 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया.
खासबात है कि वित्त वर्ष 2018 के दौरान पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 5.8 फीसदी से बढ़ी है जो कि एक दशक की सबसे तेज ग्रोथ है. इसके बावजूद हाल ही में फिच ने चेतावनी जारी की थी कि पाकिस्तान की नई सरकार के पास देश के कर्ज की समस्या को हल करने के लिए बेहद कम समय रहेगा.
फिच ने दावा किया है कि 2019 के साथ ही पाकिस्तान की आर्थिक समस्याएं और तेजी से गंभीर होने की दिशा में जाना शुरू कर देगी. अब देखना यह है कि सत्ता की बागडोर संभालने से पहले आर्थिक चुनौतियों को केन्द्र में रखने वाले पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री क्या उन्हें हल करने में सफल होंगे.