विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस में जाकर चीन को सुनाई खरी-खरी
मॉस्को : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस में चीन को खरी-खरी सुनाई है। खास बात यह है कि भारतीय विदेश मंत्री ने यह बात तब कही है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तिब्बत के धार्मिक गुरु दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई संदेश दिया है। यह बात चीन को जरूर अखरी होगी। प्रधानमंत्री मोदी के इस बधाई संदेश के सांकेतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। इसके बाद रूस में भारतीय विदेश मंत्री ने चीन को खरी-खरी सुनाई है। जानकार दोनों मामलों को एक कड़ी में जोड़कर इसे चीन के लिए एक सख्त संदेश के रूप में देख रहे हैं।
विदेश मंत्री ने कहा कि चीन के साथ 45 वर्षों में पहली बार भारत का सीमा विवाद बढ़ा है। इतना ही नहीं सीमा पर दोनों सेनाओं के बीच संघर्ष में लोगों की जान गई है। इसका असर दोनों देशों के संबंधों पर पड़ा है। जयशंकर ने कहा कि गत 40 वर्षों में भारत-चीन के साथ संबंध स्थिर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सीमा विवाद को लेकर दोनों के बीच थोड़ा बहुत तनाव जरूर रहा है, लेकिन रिश्ते ठीक रहे हैं। गत एक वर्ष में सीमा विवाद के कारण दोनों देशों के रिश्ते तल्ख हुए हैं। यह चिंता का विषय है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि चीन ने सीमा समझौते का सम्मान नहीं किया है। इसका गहरा असर दोनों देशों के बीच कायम भरोसे पर पड़ा है। बीते 75 वर्षों में दुनिया की तस्वीर बदल गई है। विश्व में एक तरह की रीबैलेन्सिंग शुरू हुई है। उत्पादन के नए केंद्र बने हैं। मुल्कों ने अपनी शक्ति के साथ-साथ बाजार को बढ़ाया है। उन्होंने स्वीकार किया इसका चीन सबसे बड़ा उदाहरण है।
विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि अपने इतिहास और शक्ति के कारण चीन बेहद अहम है। उसका आगे बढ़ना लाजमी है। उन्होंने का कि वक्त के साथ भारत भी खुद को उसी स्थिति में देखता है। परमाणु हथियारों की दौड़ में क्या हथियारों पर लगाम लगाने को लेकर भारत और चीन के बीच किसी वार्ता की उम्मीद है, इस प्रश्न पर विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि दोनों के बीच ऐसी कोई रेस है। दोनों के बीच इस मामले में काफी अंतर है। उन्होंने कहा कि अलबत्ता चीन का परमाणु हथियारों को लेकर होड़ अमेरिका और रूस से अधिक है न कि भारत से। विदेश मंत्री ने इंडो पैसिफिक मामले पर भी बेबाक बोले। उन्होंने कहा इस मामले को ऐतिहासिक रूप से देखने की जरूरत है। इंडो-पैसिफिक में मुद्दा समुद्र में ऐसी लकीरों (रास्तों) का है, जो अब व्यवाहारिक नहीं रह गई हैं। उन्होंने कहा कि एक वक्त में यूरोपीय शक्तियों ने यहाँ अपने तरीके से सुविधाएं बनाईं। दीवारें बनाईं। रास्ते बनाए और अपने हित के अनुसार यहां बदलाव किए। उन्होंने कहा कि हम दुनिया को टुकड़ों में नहीं बांट सकते हैं। अब दुनिया को वक्त के साथ बदलने की जरूरत है।