विपक्ष को नहीं हजम हो रहा यूपी का विकास
लोकसभा चुनाव के बाद अब विपक्ष का लक्ष्य 2017 में होने वाला विधानसभा चुनाव हो गया। इधर, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव परिणाम को बुरा सपना मानकर पुन: उप्र को विकास के पथ पर दौड़ाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
2012 में नए इरादों और नई उम्मीदों के साथ सूबे में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत सरकार बनी थी। विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने जनता से बहुत सारे वादे किए थे, जिन्हें सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पूरा किया और सूबे का विकास की नयी ऊचाईयों पर पहुंचाने की दिशा में ठोस कदम उठाया। अखिलेश यादव ने विकास की जो गाथा लिखना शुरू की, उसे देखकर विपक्ष की बौखलाहट स्वाभाविक थी। साल 2014 का लोकसभा चुनाव विकास के ही मुद्दे पर लड़ा गया था लेकिन यदि यही मुद्दा अंत तक कायम रहता तो परिणाम दूसरे होते लेकिन विकास की राह में विपक्ष ने साम्प्रदायिकता और ध्रुवीकरण की दीवार खड़ी कर दी। विपक्ष ने मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा का जमकर प्रचार प्रसार किया और जिसके नीचे दबकर विकास की बात ने दम तोड़ दिया। सिर्फ और सिर्फ यही कारण था कि सूबे को नयी दिशा देने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार लोकसभा में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सकी। यदि तब बात सिर्फ विकास की होती तो अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी विपक्ष पर बीस साबित होते।
लोकसभा चुनाव के बाद अब विपक्ष का लक्ष्य 2017 में होने वाला विधानसभा चुनाव हो गया। इधर, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव परिणाम को बुरा सपना मानकर पुन: उप्र को विकास के पथ पर दौड़ाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। विपक्ष को भी इस बात का भान था कि केन्द्र में बैठी सरकार विकास के नाम पर सिर्फ भाषण दे रही है जबकि उप्र में धरातल पर काम होता दिख रहा था। ऐसे में एक बार फिर जहां ध्रुवीकरण और साम्प्रदायिकता को हवा दी जाने लगी वहीं केन्द्रांश के रूप में उप्र का मिलने वाली धनराशि देने में देर तो की ही जा रही है, साथ ही उसमें कटौती भी बेशुमार की जा रही है। साफ है कि उप्र को केन्द्रांश मिलेगा तो यहां विकास की गति और तेज पकड़ेगी। बस यही बात उस विपक्ष का नागवार गुजर रही है, जो 2017 में उप्र की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है। विपक्ष ने ‘लव जेहाद’ और ‘घर वापसी’ जैसे मुद्दों को छेड़कर प्रदेश की जनता का ध्यान विकास से हटाने का प्रयास शुरू कर दिया है। वहीं अब विपक्ष गाय को मुद्दा बनाकर बहुसंख्यक समाज की धार्मिक भावनाओं को भड़काने का भरसक प्रयास कर रहा है। दादरी की घटना को अकारण ही तूल देने में विपक्ष कुछ हद तक सफल भी रहा।
विपक्ष की कुत्सित चालों को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने तरीके से निष्फल करते दिख रहे हैं। वे भारतीय जनता पार्टी को ब्रांडिंग और मार्केटिंग वाला दल करार देने के साथ ही जनता को इससे दूर रहने की नसीहत देने में देर नहीं कर रहे। मुख्यमंत्री जानते हैं और कमोबेश इसीलिए उन्होंने पिछले दिनों बरेली में कहा भी कि ब्रांडिंग और मार्केटिंग वाले दल किसी भी रूप में फिर सामने आ सकते हैं। ऐसे दल की विकास में कोई रुचि नहीं होती है इसीलिए अच्छे दिन के नारे को बाद में जुमला करार दिया जाता है। जनता को अब समझ में आने लगा है कि अच्छे दिन का नारा सिर्फ कागजी था। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश आज विकास के मामले में सबसे आगे है। समाजवादी पार्टी के एजेंडे पर ही अन्य दल भी काम कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के छात्र-छात्राओं को लैपटॉप बांटने का बड़े दलों ने विरोध किया था। अब भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में लैपटॉप बांटने को अपने घोषणापत्र में शामिल किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतें अब सोशल मीडिया का सहारा ले रही हैं। सपा इसका माकूल जवाब दे सकती है लेकिन हम उचित तरीके से जवाब देंगे। उन्होंने दादरी में गाय का मांस रखने की अफवाह पर 28 सितंबर की रात पीट-पीटकर मार डाले गए अखलाक की आर्थिक मदद की लगातार हो रही आलोचना के जवाब में कहा कि किसी परिवार की बर्बादी पर उसकी मदद करना सरकार की जिम्मेदारी है। बर्बाद हुए परिवार की मदद की आलोचना को स्वस्थ नहीं कहा जा सकता।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी सलाह दी है कि वे फेसबुक पर कम और जमीन पर ज्यादा काम करें। प्रधानमंत्री को अपने पार्टी कार्यकर्ताओं तथा सहयोगियों को अधिक प्रगतिशील तथा विकासशील होने की सलाह देनी चाहिए। 42 वर्षीय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का स्पष्ट मत है कि दादरी कांड के बाद जो कुछ भी अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने प्रकाशित किया है, अगर उसे पढ़ेंगे तो प्रधानमंत्री और बीजेपी काफी शर्मिन्दा होंगे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भिज्ञ हैं कि ऐन-केन प्रकारेण सत्ता हासिल का कुचक्र रच रहा विपक्ष उनके हर कदम की आलोचना करेगा। विपक्ष कभी समाज को बांटेगा तो कभी साम्प्रदायिकता की आग लगायेगा। साथ ही धन न देकर विकास की राह में भी अकारण अवरोध उत्पन्न किए जायेंगे। इसीलिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भोपाल में वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो कि नीति आयोग द्वारा गठित मुख्य मंत्रियों के मुखिया हैं, को भी केन्द्रांश को लेकर अपनी आपत्तियों से अवगत कराया।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ कहा कि भारत सरकार के वर्ष 2015-16 के बजट में केन्द्रीय योजनाओं के लिए केन्द्रांश परिवर्तन एवं कुछ अन्य योजनाओं में बजट व्यवस्था न होने से राज्य को मिलने वाली धनराशि में करीब 18,257 करोड़ रुपए की कमी होने की संभावना है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 2015-16 के केन्द्रीय बजट में राज्यों से अभिमत प्राप्त किए बिना एकाएक केन्द्र पुरोनिधानित योजनाओं के पुनर्गठन का जो निर्णय लिया गया है, उसके कारण राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हालांकि चौदहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र से राज्यों के डीवोल्यूशन को 32 से 42 प्रतिशत बढ़ाया गया है, लेकिन फॉरेस्ट कवर को अत्यधिक महत्व दिए जाने की वजह से उत्तर प्रदेश को नुकसान हुआ है और एक अनुमान के आधार पर राज्य को 9,000 करोड़ रुपए इस फार्मूले के लागू होने की वजह से कम प्राप्त होंगे। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि मनरेगा तथा सोशल इन्क्लूजन की केवल सात योजनाओं को ही शामिल किया गया है। इसमें कई अन्य योजनाओं जैसे शहरी और ग्रामीण इलाकों में अवस्थापना सुविधाओं का सृजन, कृषि, ऊर्जा, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य, नगरीय विकास, गरीबी उन्मूलन, ग्राम्य विकास आदि से जुड़ी योजनाओं को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। साथ ही उनके वर्तमान वित्त पोषण की व्यवस्था बनाये रखनी चाहिए। अन्यथा चाहे वे किसानों की योजनाएं हों, अथवा स्वास्थ्य योजनाएं हों या शिक्षा की योजनाएं हों, सभी का आकार कम हो जायेगा और राज्य के विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इसके अलावा मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि राज्यों के लिये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, स्वच्छ भारत मिशन (निर्मल भारत अभियान), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), त्वरित सिंचाई लाभ परियोजना (एआईबीपी), इन्दिरा आवास योजना (आईएवाई), मध्यान्ह भोजन योजना (एमडीएम), सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए), समेकित बाल विकास कार्यक्रम (आईसीडीएस), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) इत्यादि योजनाओं में पूर्ववत् वित्त पोषण के आधार पर केन्द्रीय सहायता उपलब्ध करायी जाए। मुख्यमंत्री ने सब-ग्रुप द्वारा आशाकर्मियों, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों तथा अनुबन्धित शिक्षकों के वेतन इत्यादि के लिए वर्तमान स्तर के आधार पर आगामी दो वर्षों तक राज्यों को सहायता उपलब्ध कराए जाने की संस्तुति के सम्बन्ध में कहा कि ये सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं तथा आगे भी चलेंगे। इसलिये वेतन आदि के लिए सहायता दो वर्षों के आगे भी जारी रहनी चाहिए। साफ है कि केन्द्र उप्र के साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है और इसके पीछे राजनीति के अलावा और कुछ भी नहीं है। विपक्ष भी जानता है कि यदि अखिलेश यादव को बिना किसी तनाव और बाधा के काम करने दिया गया तो उनके मंसूबों पर पानी फिरना तय है। इसीलिए मुजफ्फरनगर का कहानी सूबे में फिर से दोहराये जाने की नित साजिशें हो रही हैं। विपक्ष के पास ध्रुवीकरण के इतर और कोई बाण उनके तरकश में बचा नहीं है।
उधर, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आगरा में सफल निवेशक सम्मेलन करने के बाद मुम्बई में भी ऐसा ही आयोजन कर सफलता के झण्डे गाड़े। हाल में राजधानी लखनऊ में भी उन्होंने इसी दिशा में कदम बढ़ाये। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मानना है कि सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम यानि एमएसएमई ही पूरी अर्थव्यवस्था को ‘टर्न अराउण्ड’ कर सकता है। उन्होंने फिर दोहराया कि ‘मेक इन इण्डिया’ तभी सफल हो सकेगा, जब ‘मेक इन यूपी’ सफल होगा। इस अभियान को सफल बनाने की जिम्मेदारी केन्द्र एवं राज्य सरकार दोनों की है। ऐसे में, दोनों सरकारों को मिल-जुलकर काम करना होगा तभी हमें सफलता मिलेगी। उन्होंने कहा कि भारत विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हमें ऐसे प्रयास करने होंगे, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था बेहतर हो, उद्यमी आगे बढें़ और समाज में खुशहाली आए।
उन्होंने उत्तर प्रदेश की सूक्ष्म एवं लघु औद्योगिक इकाइयों को सरकारी खरीद में क्रय वरीयता शीघ्र प्रदान करने तथा रेट कॉन्ट्रैक्ट शीघ्र लागू करने पर भी विचार किए जाने की घोषणा की। उन्होंने लखनऊ में हस्तशिल्प उत्पादों के प्रदर्शन एवं बिक्री के लिए एक्स्पो मार्ट शीघ्र चालू करने तथा सूबे में एमएसएमई द्वारा निर्मित उत्पादों के ऑनलाइन प्रदर्शन एवं बिक्री हेतु डायनमिक एमएसएमई पोर्टल की जल्द ही स्थापना करने का भी ऐलान किया। सूबे में एमएसएमई नीति की आवश्यकता को देखते हुए उन्होंने इसके शीघ्र ऐलान का भी आश्वासन दिया। उन्होंने ‘मुख्यमंत्री खाद्य प्रसंस्करण मिशन योजना’ जल्द लागू किए जाने की घोषणा भी की है। श्री यादव ने साफ कहा कि एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए मार्केटिंग और ब्राण्डिंग पर विशेष ध्यान देना होगा। एमएसएमई की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका है। यह सेक्टर जहां बड़े पैमाने पर रोजगार देता है, वहीं इसका निर्यात में भी उल्लेखनीय योगदान है। प्रदेश के औद्योगिक विकास में एमएसएमई विशेष योगदान दे सकता है। श्री यादव ने कहा कि प्रदेश के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में इस सेक्टर के योगदान और महत्व को देखते हुए ‘उत्तर प्रदेश सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्रयनीति’ लागू की गई है। हस्तशिल्प सेक्टर के समग्र विकास के लिए समाजवादी सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश हस्तशिल्प प्रोत्साहन नीति’ भी लागू की है। उन्होंने कहा कि एमएसएमई सेक्टर की सफलता के लिए तथा उसे और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए दक्ष मानव संसाधन की आवश्यकता होती है। एमएसएमई सेक्टर को कुशल मानव संसाधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने राज्य कौशल विकास मिशन की शुरूआत की है। प्रदेश सरकार राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए वल्र्ड क्लास कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास कर रही है, जिसमें आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे उल्लेखनीय है।
साथ ही, लखनऊ से बलिया एक्सप्रेस-वे, जिसे पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की संज्ञा देना उचित होगा, का भी विकास किया जाएगा। मुख्यमंत्री का स्पष्ट मत है कि आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के पूर्ण होने के उपरान्त व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। इस एक्सप्रेस-वे के किनारे औद्योगिक शहर, लॉजिस्टिक हब और एग्रीकल्चर मार्केट स्थापित किए जाएंगे। यही नहीं, उद्योगों को और अधिक सहूलियत देने के लिए डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर को जोड़ने वाली सड़कों को 4-लेन किया जा रहा है। जिला मुख्यालयों को जोड़ने वाले मार्गों के चौड़ीकरण से स्थानीय उद्योगों जैसे भदोही की कारपेट इण्डस्ट्री इत्यादि को काफी लाभ मिलेगा।
उद्योग और रोजगार के अलावा मुख्यमंत्री ने सूबे की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया कराने की ओर विशेष ध्यान दिया है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में समाजवाद लाने का काम किया है। समाजवादी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही स्वास्थ्य सेवाएं लगातार बेहतर हुई हैं। वर्तमान में राज्य में सभी के लिए सस्ती एवं उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हैं, इन सेवाओं को लगातार और बेहतर करने का प्रयास जारी है। हाल में मुख्यमंत्री ने राजधानी लखनऊ में मेदान्ता-अवध सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की आधार शिला रखी।
वहीं दूसरी ओर फिलहाल तो विपक्ष बिहार विधानसभा चुनाव की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए है लेकिन उसके बाद विपक्ष के निशाने पर उप्र तथा सूबे की सपा सरकार ही होगी। लेकिन इन सब चिन्ताओं से इतर मुख्यमंत्री सूबे का भविष्य संवारने में दिन रात एक किए हुए हैं। अब देखना है कि विकास पर साम्प्रदायिकता और ध्रुवीकरण की राजनीति कितनी भारी पड़ती है।=