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वीरभद्र के विरुद्ध धन शोधन का मामला- केंद्र

virbhadra-singhनई दिल्ली। केंद्र सरकार ने आज दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के विरुद्ध धनशोधन का मामला प्रथम दृष्टया बनता हुआ जान पड़ता है। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ ने आयकर विभाग को एक सप्ताह के अंदर मुख्यमंत्री के कर आकलन रिकार्ड एवं अन्य दस्तावेज भी उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया है। पीठ ने कहा, ‘‘इस बीच, हम इस मामले में सीबीआई द्वारा पेश स्थिति रिपोर्ट पर आगे बढ़ना चाहते हैं।’’ केन्द्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल संजय जैन ने कहा, ‘‘यह कहने के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त सामग्री है कि प्रतिवादी नंबर 5 (वीरभद्र सिंह) के विरुद्ध धनशोधन का मामला बनता है।’’ वह गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज के वकील प्रशांत वकील की दलीलों पर जवाब दे रहे थे। कॉमन कॉज का कहना है कि मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सामग्री होने के बाद भी जांच एजेंसी प्राथमिकी दर्ज करने में अनावश्यक देरी कर रही है। जैन ने कहा कि केवल सीबीआई ही जांच की सटीक स्थिति के बारे में बता सकती है। सीबीआई ने पहले उच्च न्यायालय से कहा था कि वह कांग्रेस नेता के विरुद्ध वर्ष 2002 में उनके हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के दौरान लगे भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच कर सकती है बशर्ते कि अदालत आवश्यक आदेश जारी करे। जांच एजेंसी ने अदालत में हलफनामा पेश किया था। अदालत ने चार अप्रैल सीबीआई को सिंह के विरुद्ध भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के आरोपों की प्राथमिक जांच जल्द पूरा करने और उसे तार्किक परिणति तक पहुंचाने का निर्देश दिया था। अपने हलफनामे में सीबीआई ने कहा था कि वेंचर एनर्जी एंड टेक्नॉलोजी प्राइवेट लिमिटेड को 14 जून, 2002 को साई कोटि पनबिजली परियोजना का काम देने में लगे आरोपों की जांच के लिए उसे सक्षम उच्च न्यायालय से आदेश की दरकार होगी। उससे पहले अदालत ने मामले की जांच में देरी पर चिंता जतायी थी और कहा था कि सीबीआई इतना ज्यादा समय नहीं ले सकती। यह हलफनामा एनजीओ के आवेदन पर दिया गया था। एनजीओ ने सीबीआई को सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच करने का निर्देश दिए जाने की मांग की थी। एनजीओ के अनुसार उनके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य सरकार ने इस निजी कंपनी को साई कोटि परियोजना का काम दिया। परियोजना के कार्यान्वयन में गलती करने के बाद भी राज्य सरकार ने बार बार उसे विस्तार प्रदान किया।

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