उत्तराखंड

वैज्ञानिकों की जुबानी सुनिए हा‌थी के पुरखों की कहानी

delhi-elephant-4-55f5f1e4cf62c_exlstहिमालय की तलहटी में शिवालिक रेंज की वादियां विशालकाय हाथियों की चिंघाड़ से गूंजा करती थीं। यहां हाथियों की सबसे पुरानी डायनोथीरियम प्रजाति का एकछत्र राज था।

दुनिया में हाथियों की न केवल सबसे अधिक प्रजातियां यहां मौजूद थीं, बल्कि आधुनिक एशियाई हाथियों के पुरखे भी यहीं पैदा हुए थे। भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण केवैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक हाथियों का सबसे पुराना (एक करोड़ 30 लाख साल पहले का) जीवाश्म शिवालिक रेंज में मिला है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि क्षेत्रों तक फैले विशाल शिवालिक क्षेत्र में हाथियों की पांच प्रजातियों के साक्ष्य मौजूद हैं। जीवाश्म के रूप में भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के पुरा मानव विज्ञानी डॉ. एआर संख्यान को मिले ये साक्ष्य खुद में शिवालिक रेंज में हाथियों केसाम्राज्य का लंबा इतिहास संजोये हैं।

 

हिमालय के ऊंचा होने के साथ हुई बर्फबारी से जलवायु परिवर्तन केकारण हाथियों की चार नस्लें खत्म हो गईं। वैज्ञानिकों की मानें तो जो आधुनिक एशियाई हाथी हैं उन्हीं के पुरखे जलवायु में हुए बदलाव को झेल पाए। आधुनिक हाथियों की तरह मिलते-जुलते हाथी अफ्रीका में भी रहे हैं। शिवालिक से भीहाथियों ने वहां पलायन किया था।

वैज्ञानिकों ने बताया कि शिवालिक क्षेत्र में हाथियों की डायनोथीरियम, अनंकस, स्टीगोलोफोडान, स्टीगोडान और एलीफाम प्रजातियां रही हैं। सबसे पुरानी प्रजाति डायनोथीरियम थी। आधुनिक हाथी एलीफाम प्रजाति के हैं।

जीवाश्म की जांच से पता चला है कि डायनोथीरियम एक करोड़ 30 लाख साल पहले, अनंकस एक करोड़ साल पहले, स्टीगोलोफोडान 80 लाख साल पहले और स्टीगोडान 40 लाख साल पहले शिवालिक क्षेत्र में मौजूद थे। आधुनिक हाथी एलीफाम केजो जीवाश्म मिले हैं वे 20 लाख साल पुराने हैं।

‘डायनोथीरियम हाथी निम्न शिवालिक में रहा है। अनंकस और दूसरी प्रजातियां निम्न और मध्य शिवालिक में विचरण करती रहीं। इसी क्षेत्र में हाथियों के जीवाश्म मिले हैं।’
– डॉ. एआर संख्यान (पुरा मानव विज्ञानी एवं जीवाश्म विशेषज्ञ)

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