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वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बना लैम्बडा वेरिएंट, इस वैक्सीन को दे रहा चकमा

नई दिल्ली. कोरोना वायरस तेजी से रूप बदल रहा है. डेल्टा और डेल्टा प्लस के बाद अब लैम्बडा वेरिएंट ने चिंता बढ़ाई है. एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट इस वेरिएंट को बड़ी चुनौती की तरह देख रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ में शामिल किया है. संगठन के अनुसार पहले C.37 के रूप में पहचाना जा रहा यह वेरिएंट दिसंबर 2020 में सामने आया था. बुधवार को ही डब्ल्युएचो ने कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जाहिर की है.

पहली बार कहां मिला था लैम्ब्डा वेरिएंट
SARS-CoV-2 के लैम्ब्डा वेरिएंट से जुड़ा मामला पहले पेरू में दिसंबर 2020 में सामने आया था. जबकि, डब्ल्युएचओ ने इसे 14 जून ‘वेरिएंट और इंटरेस्ट’ में शामिल किया था. अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों? दरअसल एक रिपोर्ट के अनुसार, हर 200 मामलों में एक मरीज इस वेरिएंट का शिकार होता है. दक्षिण अमेरिकी देश में यह आंकड़ा अब बढ़कर 80 फीसदी पर पहुंच गया है. इसके अलावा पेरू में सबसे ज्यादा मृत्यु दर भी है, लेकिन इस बात का अब तक कोई सबूत नहीं मिला है कि लैम्ब्डा के चलते देश में संक्रमण और मौत के मामले बढ़े हैं.

वैक्सीन पर क्या पड़ता है इसका असर
मीडिया रिपोर्ट्स में पेरू में हुई एक स्टडी के हवाले से बताया जा रहा है कि ये वेरिएंट वैक्सीन से भी बच सकता है. शुरुआती स्टडी में कहा जा रहा है कि चीन में तैयार की गई वैक्सीन कोरोवैक से बनी एंटीबॉडीज को लैम्ब्डा वेरिएंट आसानी से चकमा दे देता है. हालांकि, इस स्टडी की समीक्षा की जानी बाकी है.

भारत में लैम्बडा की क्या है स्थिति
बुधवार को समाचार एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि कोरोना वायरस के लैम्ब्डा वेरिएंट का कोई भी मामला भारत में नहीं मिला है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब 31 देशों में लैम्ब्डा वेरिएंट के मामले मिल चुके हैं. ब्रिटेन में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने लैम्बडा को 23 जून को ‘वेरिएंट अंडर इन्वेस्टिगेशन’ में शामिल किया था.

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