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कानपुर आईआईटी में पिछले 15 साल के शोध व सर्वे तथा देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट भविष्य के लिए भयानक संकेत दे रही है। आईआईटी कानपुर में हुए सर्वे के मुताबिक चंडीगढ़, पिंजौर और तकसाल कमजोर जोन हैं।
भू विज्ञानी प्रो. जावेद एन मलिक ने हिमालयन श्रृंखला में भूकंप को लेकर 2001 से 2015 तक किए अपने शोध में बताया कि हिमालयन क्षेत्र का भूकंप उत्तर भारत में कई जगह तबाही ला सकता है।
इस तबाही का केंद्र हिमालय श्रृंखला हो सकता है, जिसकी दूरी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली सहित अन्य राज्यों से कम है। कम दूरी पर ज्यादा नुकसान वाले इस शोध का मसौदा मिनिस्ट्री आफ अर्थ साइंस को भेजा गया है।
इन वैज्ञानिकों ने इसका कारण इंडियन और यूरेशियन प्लेट का प्रेशर रिलीज हो चुका होना बताया गया। प्रो. जावेद ने बताया कि इन दावों के बावजूद नेपाल-बिहार में भूकंप आया।
ऐसा किया शोध, सर्वे
सेटेलाइट डाटा और हाई रेजोल्यूशन कैमरे की मदद से चंडीगढ़ की जमीनी हकीकत देखी गई। पता चला कि चंडीगढ़ में जमीन की सतह 35 मिलीमीटर बदली है। चंडीगढ़ से 20 किलोमीटर आगे पिंजौर में जमीन की सतह 6-12 मीटर बदली मिली।
शिमला में कालका के पास तकसाल फाल्ट के अध्ययन में भी जमीन का मूवमेंट अलग तरह से मिला। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी जमीन के सतह में परिवर्तन हुआ है। इसका मतलब है कि एक्टिव फाल्ट बने हैं। जमीनी प्लेट ऊपर, नीचे या फिर एक दूसरे से भिड़ने की स्थिति में है। ऐसे में अगर प्लेट टूटी तो भूकंप का आना निश्चित है।
गढ़वाल में भी वर्ष 1803 में बड़ा भूकंप आया था, यानी खतरा बरकरार है। वाडिया के भूकंप विशेषज्ञ डा. सुशील कुमार का कहना है कि मोहांड से उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर, पिथौरागढ़ समेत किसी भी क्षेत्र में भूकंप आने का खतरा है।
भूकंप के झटके चेतावनी भर हैं
पीयू के रिटायर्ड प्रोफेसर एडी आहलुवालिया कहते हैं कि पिछले दिनों आया भूचाल एक चेतावनी भर है। शोध के मुताबिक, एक्टिव फाल्ट के निचले हिस्से पर जबरदस्त दबाव है जो कभी भी उभर सकता है। जब भी ऐसा होगा तो भूकंप की आशंका बनती है।