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वैश्विक मंदी का खतरा, 20 डॉलर का हो सकता है कच्चा तेल

नई दिल्ली : कई आर्थिक आंकड़े ग्लोबल इकॉनमी के लिए मुश्किल वक्त का इशारा कर रहे हैं। रियल विजन ग्रुप के सीईओ राउल पैल ने कह रहे हैं कि वैश्विक मंदी आने वाली है और 2008 की तुलना में कहीं बड़ी गिरावट आ सकती है…?

मेरा काम अनुमान लगाना है। मैं पक्के तौर पर किसी बात की गारंटी नहीं दे सकता। कई चीजों को देखकर मुझे लग रहा है कि आने वाला वक्त चुनौतीपूर्ण हो सकता है। पहले अमेरिका और ग्लोबल इकनॉमिक ग्रोथ की बात करते हैं। आज चारों ओर इकनॉमिक ग्रोथ कम हो रही है। कई देश पहले ही मंदी में जा चुके हैं। अमेरिका भी मंदी की तरफ बढ़ता हुआ दिख रहा है। मेरा मानना है कि फेडरल रिजर्व ने एक साल पहले ब्याज दरों में जो कटौती शुरू की थी, उसकी वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। इसके साथ व्यापार युद्ध और चीन के आर्थिक सुस्ती में फंसने से ग्लोबल इकनॉमी की परेशानियां और बड़ गई हैं। भारत की इकनॉमिक ग्रोथ में भी हम गिरावट देख ही चुके हैं।
अब सवाल यह है कि क्या हालात और मुश्किल और पेचीदा हो सकते हैं? मुझे इसकी आशंका दिख रही है। बॉन्ड मार्केट से इसके संकेत दिख रहे हैं। यूरोप और खासतौर पर अमेरिका में बॉन्ड यील्ड में तेजी से गिरावट आ रही है। यह मंदी के आने का संकेत है।
कौन से ऐसे संकेत हैं, जिनसे मंदी के आने की जल्द आने की आशंका दिख रही है?
मुझे कुछ समय से इसके संकेत दिख रहे हैं। मार्च 2018 में चीन की आर्थिक ग्रोथ में नाटकीय ढंग से गिरावट आई थी। उसके बाद व्यापार युद्ध शुरू हुआ और फिर अमेरिका में सुस्ती आने लगी। इधर, बॉन्ड मार्केट में नाटकीय ढंग से गिरावट शुरू हुई है। हमने इस साइकल के अगले हिस्से यानी ब्याज दरों में कटौती में पहुंच गए हैं। अमेरिका में अभी तक ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती हुई है, लेकिन बॉन्ड मार्केट इसमें कहीं अधिक गिरावट का अंदाजा लगा रहा है। मुझे लग रहा है कि फेडरल रिजर्व हालात की गंभीरता को नहीं समझ रहा है और वह अंडरपरफॉर्म कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो डॉलर और बॉन्ड मार्केट प्रभावित होंगे। शायद बॉन्ड यील्ड इनवर्जन और बढ़े।
मुझे वैश्विक मंदी आती हुई दिख रही है और ऐसे फैक्टर्स नहीं दिख रहे, जो इसे रोक सकें। दुनियाभर में कैपिटल एक्सपेंडिचर में गिरावट आ रही है। जर्मनी मंदी में है और चीन में आर्थिक सुस्ती आ चुकी है। मैन्युफैक्चरिंग और ग्लोबल ट्रेड में हर जगह गिरावट दिख रही है। हर बड़े देश के ग्लोबल एक्सपोर्ट में गिरावट आ रही है। कई ऐसे इंडिकेटर्स हैं, जो आने वाले वक्त के चुनौतीपूर्ण रहने का इशारा कर रहे हैं।

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