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वोटों के लिए जुटे सियासी दल, भाजपा ने दलित चेहरे किए आगे

ताजा घटनाक्रम के मद्देनजर सियासी दल वोटों के गुणा-भाग में जुट गए हैं। विपक्ष को 2019 को लेकर काफी उम्मीदें दिखने लगी हैं। खास तौर से सपा और बसपा को अपने लिए बेहतर संभावनाएं लग रही हैं। समीकरण बैठाए जा रहे हैं। भाजपा ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। उसकी पहली चिंता दलित वोटों का भाजपा से छिटकाव रोकने की है। इसके लिए पार्टी ने अपने दलित चेहरों को आगे किया है।वोटों के लिए जुटे सियासी दल, भाजपा ने दलित चेहरे किए आगे

कांग्रेस भी सक्रिय है। सभी दलों के नेताओं के दौरे भी तय हो रहे हैं। सभी दल इस प्रयास में जुट गए हैं कि प्रदेश की आबादी में 24 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोग किस तरह अधिक से अधिक संख्या में उनके साथ जुड़ सकते हैं।

डॉ. आंबेडकर की जयंती पर 14 अप्रैल को प्रदेश के सभी लगभग डेढ़ लाख बूथों पर भाजपा के सामाजिक समरसता कार्यक्रम पहले से तय थे। पर, विपक्ष की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए पार्टी के अनुसूचित मोर्चा ने जयंती की पूर्व संध्या पर 13 अप्रैल को प्रदेश भर में पदयात्राएं निकालने का फैसला किया है।

इन पदयात्राओं का नेतृत्व अनुसूचित मोर्चा का कोई पदाधिकारी यानी दलित चेहरा ही करेगा। कोशिश इन पदयात्राओं के जरिये दलितों को समझाने व मनाने के साथ प्रदेश में यह माहौल बनाने की है कि दलितों की वास्तविक हितैषी भाजपा ही है। इसके लिए नारा दिया गया है, ‘बाबा तेरा मिशन अधूरा, भाजपा उसे कर रही पूरा।’

सपा ने अपने पिछड़े, दलित और मुस्लिम नेताओं के जरिये इन वर्गों को अपने पक्ष में लामबंद करने की तैयारी की है। इनकी बैठकें तय हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती भी दलित वोट सहेजने को सक्रिय हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत भाजपा को दलितों का विलेन साबित करने में लगा दी है। साथ ही यह आह्वान करके कि डॉ. आंबेडकर का कोई सच्चा अनुयायी भाजपा के सांसदों को अपने गांव मे घुसने नहीं देगा, अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं।
जाहिर है मायावती की कोशिश एससी-एसटी एक्ट पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान घटी घटनाओं के बाद बनी परिस्थिति का लाभ उठाते हुए गांव-गांव दलितों को अपने साथ लामबंद करने की है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी भारत बंद के दौरान घटी घटनाओं के बहाने भाजपा पर दलितों का उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए इसके विरोध में उपवास की घोषणा कर दलितों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की है।

ये तैयारी भी बताती बहुत कुछ

भाजपा ने आंबेडकर जयंती पर होने वाले कार्यक्रमों में केंद्र और प्रदेश सरकार के दलितों के हित में किए गए कामों को तो बताने की तैयारी की ही है। सपा, बसपा और कांग्रेस की सरकारों में दलितों और दलित महापुरुषों के हितों की अनदेखी की घटनाओं पर भी फोकस करने की तैयारी की है। उदाहरण के लिए भाजपा दलितों को यह भी बताएगी कि मायावती ने उसी समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया है जिसने दलित महापुरुषों की स्मृति में बने स्मारकों की अनदेखी की। इन स्मारकों का निर्माण उसी समय शुरू हुआ जब भाजपा के समर्थन से मायावती की सरकार बनी थी।
 
 

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