अद्धयात्म

वो बालक जो मां के गर्भ से नहीं जन्मा, पैदा होते ही देव सेना को दी थी मात

भारत में हिंदुत्व का महत्व लाखों साल पहले से देखने को मिलता रहा है। सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग की भी अपनी महत्ता है, जिनसे कई पौराणिक कथाएं (Religious Story)जुड़ी हैं।

वो बालक जो मां के गर्भ से नहीं जन्मा, पैदा होते ही देव सेना को दी थी मातआज हम आपको एक ऐसे पौराणिक बालक (Religious Story) की कथा बताने जा रहे हैं, जिसने मां के गर्भ जन्म नहीं लिया बल्कि उसे आकार दिया। साथ ही पैदा होते ही युद्ध भी किया और देवताओं की ताकतवर सेना को भी धूल चटा दी। तो आइए जानते हैं उस बालक के बारें में…

दरअसल यह बालक कोई और नहीं बल्कि वैदिक देवता गणेशजी ही हैं। गणेश का जन्म देवी पार्वती के गर्भ से नहीं हुआ था बल्कि पार्वतीजी ने अपनी शक्ति से उनका निर्माण किया था। इससे सम्बंधित एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है…

जन्म कथा

कथा के अनुसार एक बार शिवजी के गण नंदी ने माता पार्वती की आज्ञा पालन में गलती कर दी, जिससे रुष्ट होकर माता पार्वती ने स्वयं एक बालक के निर्माण का निश्चय किया। माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल और उबटन से एक पिंड का निर्माण किया और अपनी शक्ति से उसमे प्राण डाल दिए। माता पार्वती ने उससे कहा की तुम मेरे पुत्र हो, तुम्हारा नाम गणेश है। तुम्हें सिर्फ मेरी ही आज्ञा का पालन करना है और किसी की भी नहीं। अब मैं स्नान करने अंदर जा रही हूँ. ध्यान रहे जब तक मैं स्नान करके वापस नहीं आऊं कोई भवन के अंदर नहीं आ पाए।

पैदा होते ही किया युद्ध और शिव सेना को दी मात

पुत्र गणेश को ऐसी आज्ञा देकर माता पार्वती स्नान करने भवन के अंदर चली गई और पुत्र गणेश वही भवन की पहरेदारी के लिए रह गए। कुछ समय पश्चात वहां भगवान शंकर आए और पार्वती के भवन में जाने लगे। यह देखकर उस बालक ने विनयपूर्वक उन्हें रोका और कहा आप अंदर नहीं जा सकते। यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हुए। पहले तो उन्होंने बालक को समझाया पर जब बालक गणेश नहीं माने तो उन्होंने नंदी और अपने गणों को बालक को वहाँ से हटाने को कहा। पर बालक गणेश ने शिव सेना के बड़े-बड़े योद्धाओं को परास्त कर दिया। इससे क्रोधित हो भगवान शिव ने हठी बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया और भवन के भीतर चले गए।

भगवान शिव को क्रोधित देखकर माता पार्वती ने उनसे इसका कारण पूछा। तब भगवान शिव ने उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया.यह सुन देवी पार्वती क्रोधित हो विलाप करने लगीं। उनकी क्रोधाग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी (गज) के बच्चे का सिर काट कर बालक के धड़ से जोड़ दिया।

भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए। देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहरता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की। इस प्रकार भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ।

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