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वो 1 अक्तूबर 1967 का दिन था…भारतीय जवानों ने चीन को ऐसे किया था पस्त

MOSCOW REGION, RUSSIA - AUGUST 13, 2016: China's ZBD-86A infantry fighting vehicle during the final stage of the Suvorov Attack competition among IFV crews at Alabino Firing Range as part of the 2016 Army Games, an international event organized by the Russian Defense Ministry. Dmitry Serebryakov/TASS (Photo by Dmitry SerebryakovTASS via Getty Images)

नई दिल्‍ली। वो 11 सितंबर 1967 का दिन था। अचानक चीन ने सिक्‍किम-तिब्‍बत सीमा पर हमला बोल दिया। चीन की कोशिश थी कि वह किसी भी तरह से भारतीय सीमा को पार कर जाए। भारी मोर्टार के हमले के बीच चार-पांच दिन तक लगातार चीन यही कोशिश करता रहा। लेकिन चौकस भारतीय जवान चीन के हमले को नाकाम करते रहे। 15 सितंबर को संघर्ष विराम हो गया और गोलीबारी थम गई।

बावजूद इसके हमारे जवान लगातार सतर्क रहे, क्‍योंकि वो चीन को अच्‍छी तरह से समझ चुके थे। जैसा जवानों ने सोचा था, हुआ भी ठीक वैसा ही। संघर्ष विराम के बाद भी एक अक्तूबर को चीन ने नाथूला और चोला पास पर हमला बोल दिया।

दरअसल, सर्दी शुरू होते ही भारतीय फौज करीब 13 हजार फुट ऊंचे चोला पास पर बनी अपनी चौकियों को खाली कर देती थी और गर्मियों में जाकर दोबारा तैनात हो जाती थी। चीन ने यह हमला पूरी तैयारी और ताकत के साथ किया था। लेकिन चीन की मंशा को भांपते हुए हमारी सेना ने सर्दी में भी उन चौकियों को खाली नहीं किया था। नतीजा आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई।
मेजर जनरल रिटायर्ड जीडी बख्‍शी बताते हैं कि हमारी सेना ने भी इस बार चीन को मुंहतोड़ जबाव देने के लिए मीडियम आर्टिलरी का इस्‍तेमाल करना शुरू कर दिया। एक से 10 अक्‍टूबर तक चली लड़ाई में वो इतवार का दिन था। हमारी सेना ने पूरी ताकत लगाकर चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। लगातार हमले किए गए। चीन के करीब साढ़े तीन सौ जवान मारे गए। यह लड़ाई दस दिन तक चली थी।

इस लड़ाई को लीड करने वाले थे 17वीं माउंटेन डिवीजन के मेजर जनरल सागत सिंह। लड़ाई के दौरान ही नाथूला और चोला पास की सीमा पर बाड़ लगाने का काम किया गया। इस दौरान बाड़ लगाने के काम को रोकने के लिए चीन ने लगातार कोशिश जारी रखीं, लेकिन मेजर जनरल सागत सिंह की अगुवाई में 18 राजपूत, 2 ग्रेनेडियर्स और पायनियर-इंजीनियर्स की एक-एक पलटन ने बाड़ लगाने के काम को अंजाम दे दिया। चीन को इस लड़ाई में करारी हार मिली थी। इस लड़ाई में भारत ने अपने 88 जवानों को खोया तो चीन के 340 जवान मारे गए और 450 घायल हुए।

चीन ने नहीं चलाई गोली

चोला और नाथूला पास पर 1967 में हुई 10 दिन की लड़ाई में चीन को करारी हार मिली थी। यही वजह है कि उसके बाद से आज तक चीन ने भारत की ओर एक भी गोली चलाने की हिम्‍मत नहीं जुटाई। मेजर जनरल रिटायर्ड योगी बहल और मेजर जनरल रिटायर्ड जीडी बख्‍शी भी मानते हैं कि जब हमने 1967 वाली लड़ाई में हिम्‍मत दिखाई तो उसका असर यह हुआ कि आज तक चीन बॉर्डर पर हो-हल्‍ला तो करता है, अपने जवानों को बॉर्डर पर इकट्ठा कर शक्‍ति प्रदर्शन तो करता है, लेकिन कभी एक गोली चलाने की हिम्‍मत नहीं की।

और सिक्किम भारत में

जानकारों की मानें तो 1967 में लड़ी गई इस लड़ाई के बाद ही भारतीय सेना ने चीन को सिक्‍किम क्षेत्र से पूरी तरह खदेड़ दिया था। एक-एक चीनी सैनिक से सिक्‍किम को खाली करा लिया गया। उसके बाद से सिक्‍किम भारत में शामिल हो गया। लेकिन सिक्‍किम को एक राज्‍य का दर्जा मिलने में थोड़ा वक्‍त लग गया। वर्ष 1975 में जाकर सिक्‍किम को राज्‍य का दर्जा दिया गया।

गोली खत्‍म हुई तो खुखरी का सहारा

कहा जाता है कि 1967 की इस लड़ाई में राजपूताना रेजीमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह, मेजर हरभजन सिंह, गोरखा रेजीमेंट के कृष्ण बहादुर, देवी प्रसाद ने यादगार लड़ाई लड़ी थी। इन सभी बहादुर अफसरों और जवानों के बारे में बताया जाता है कि जब लड़ाई के दौरान गोलियां खत्‍म हो गईं तो इन सभी ने अपनी खुखरी से कई चीनी अफसरों और जवानों को मौत के घाट उतार दिया।

मेजर जनरल (रिटायर्ड) योगी बहल कहते हैं, बेशक यह 10 दिन की लड़ाई थी, लेकिन हमारे जवानों ने चीन को करारी हार चखाई थी। आज तक चीन ने नाथूला और चोला पर दोबारा हमले की कभी कोशिश नहीं की है। हम प्रधानमंत्री के सामने इस लड़ाई को भी जश्‍न के साथ याद रखे जाने की मांग उठाएंगे

मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्‍शी असल में बात यह है कि सेना के इतिहास के लिए हमारे यहां कोई जगह नहीं है, इसीलिए लिए हम चोला और नाथूला पास पर हुई इस लड़ाई को भूले जा रहे हैं। लेकिन चीन इसे याद रखता है, क्‍योंकि उसके बाद से कभी भी चीन ने भारत की ओर कोई फायर नहीं खोला है।

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