दस्तक-विशेषसाहित्य
शब्द रूठे हैं
शब्द रूठे हैं
अर्थ भूखे हैं
आत्मा सोई है
परमात्मा खोया है
मन मटमैला है
तन पथरीला है
अधर सूखा है
अम्बर रूठा है
लहरें लुप्त हैं
तरंगें सुप्त हैं
चाँद दूर है
चांदनी मजबूर है
सब रहस्य है
सब गुप्त है
भावनाएँ वंचित हैं
संभावनाएं प्रपंचित हैं
शायद इसीलिए …..
शब्द रूठें हैं
अर्थ भूखें हैं।
उड़ो, कि उड़ना ही जिंदगी है
जिंदगी की डोर
हाथ में है तेरे
बांध उम्मीदों की गाँठ
अरमानों के आसमान में
उड़ो, कि उड़ना ही जिंदगी है
किसी और के डोर से
उलझने की जरूरत ही क्यों
हवाओं के पेंच में
फँसने की जरूरत ही क्यों
जिंदगी पतंग नहीं उमंग है
उड़ो, कि उड़ना ही जिंदगी है
डॉ. अनूप मिश्र
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (अर्थशास्त्र-विभाग)
डी.ए.वी.पी.जी. कॉलेज, वाराणसी