शाकाहार बनाम मांसाहार! किसने क्या कहा?
शाकाहार बनाम मांसाहार! यह विषय अमूमन सदियों से चर्चा में बना हुआ है। हर व्यक्ति अपने खान-पान को लेकर स्वतंत्र है। इसलिए भोजन में कोई शाकाहार को अहमियत देता है तो कोई मांसाहार को, लेकिन जितने भी बड़े महापुरुष और विद्वान हुए हैं उन्होंने हमेशा ही शाकाहार को प्राथमिकता दी है।
द्वापरयुग में, महाभारत युद्ध के दौरान भीष्म पितामह {अनुशासन पर्व, महाभारत} कहते हैं, ‘जो दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है। वह जहां जन्म लेता है, चैन से नहीं रह पाता है।’
पश्चिम की बात करें तो, ईसाई धर्म की पवित्र धर्म पुस्तक बाइबिल में प्रभु ईसा मसीह कहते हैं, ‘सच तो यह है कि जो हत्या करता है, वह असल में अपनी ही हत्या कर रहा है। जो मारे हुए जानवर का मांस खाता है।वह असल में अपना मुर्दा आप ही खा रहा है, यदि तुम शाकाहारी भोजन को अपना आहार बनाओगे तो तुम्हें जीवन शक्ति मिलेगी। लेकिन यदि तुम मृत {मांसाहारी} भोजन करोगे तो वह मृत आहार भी तुम्हें मार देगा। क्योंकि केवल जीवन से ही जीवन मिलता है। मौत से मौत ही मिलती है।’
चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, ‘जो मांस खाते हैं। शराब पीते हैं। वह पुरुष/ स्त्री के बोझ से पृथ्वी माता दुःख पाती हैं।’ आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती कहते हैं, ‘मांसाहार से मनुष्य का स्वभाव हिंसक हो जाता है। जो लोग मांस का सेवन करते हैं। उनके शरीर और वीर्यादि भी दूषित हो जाता है। और जिसका असर हमारी आने वाली पीढ़ी पर पड़ता है।’
भौतिकी में नोबेल पुरस्कार, का सम्मान हासिल कर चुके अल्बर्ट आइंस्टाइन कहते हैं, ‘शाकाहार पर हमारी प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि दुनिया शाकाहार को अपना ले, तो इंसान का भाग्य बदल सकता है।’ ठीक इसी तरह, साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेता जार्ज बर्नार्ड शा कहते हैं, हम मांस खाने वाले वे चलती-फिरती कब्रें हैं। जिनमें वध किए जानवरों की लाशें दफन की गई हैं। जिन्हें हमारे स्वाद के चाव के लिए मारा गया है।