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शारापोवा ही नहीं और भी खिलाड़ी झेल चुके हैं डोपिंग के आरोप में प्रतिबंध

maria2-1441003553एजेंसी/ खेलों में अभ्यास, प्रशिक्षण और शक्ति से सफलता पाने वाले खिलाड़ी जब अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए नशे का प्रयोग करते हैं तो प्रशंसकों को बड़ा धक्का लगता है। लेकिन खेलों में स्टेरॉएड दवाओं को प्रयोग काफी समय से होता आ रहा है, और कई खिलाड़ियों के कारण उनके देश और प्रशंसकों को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। 

हाल ही में रूस की टेनिस सुंदरी मारिया शारापोवा को डोपिंग का दोषी मानते हुए दो साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। हालांकि शारापोवा अनजाने में मेल्डोनियम के इस्तेमाल की बात स्वीकार करते हुए प्रतिबंध के विरुद्ध अपील करने की बात कह रही हैं। लेकिन अगर वे अपील में जीत भी गईं तो भी रियो ओलंपिक में भाग नहीं ले सकेंगी क्योंकि रियो ओलंपिक होने तक इस मामले का निस्तारण संभव नहीं है। इससे मारिया के समर्थक और देशवासी रियो में उनकी कमी महसूस करेंगे। वहीं शारापोवा स्वयं भी निराश होंगी। 

डोपिंग के मामले सभी खेलों में पाए जाते हैं, लेकिन एथलीटों में इसकी प्रवृति सबसे ज्यादा पाई गई है।आइए, शारापोवा से पहले अब तक के सबसे ज्यादा चर्चा में रहे डोपिंग मामलों पर एक नजर डालते हैं:—

ली चोंग वेई-

विश्व के नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी मलेशिया के ली चोंग वेई पर दो वर्ष पूर्व डैक्सामेथासोन स्टेरॉयड के प्रयोग दोषी पाए जाने पर 8 माह का प्रतिबंध लगा था।

मारिन चिलिच-

क्रोएशिया के टेनिस स्टार मारिन चिलिच को वर्ष 2013 में म्यूनिख ओपन टूर्नामेंट के दौरान निकैथामाइड के प्रयोग का दोषी पाए जाने पर 9 महीने का प्रतिबंध लगा था। 

आंद्रे अगासी-

आठ बार के ग्रैंड स्लैम विजेता अमरीका के आंद्र अगासी ने अपने जीवन पर लिखी पुस्तक में खुलासा किया कि वर्ष 1997 में उसने क्रिस्टल मेथापेटामाइन का प्रयोग किया था। उन्होंने इसके लिए माफी भी मांगी और भूलवश प्रतिबंधित दवा लेने पर भी प्रतिबंध झेला।

मार्टिना हिंगिस-

टेनिस की वंडर गर्ल के नाम से मशहूर स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस पर वर्ष 2007 में विंवलडन ओपन के दौरान कोकीन सेवन का दोषी पाया गया। इसके लिए आईटीएफ ने इस पर दो साल का प्रतिबंध लगाया लेकिन वह 2013 में युगल मैचों में मैदान पर लौटी। इनके नाम 7 एकल, 12 महिला युगल तथा 5 मिश्रित युगल ग्रैंड स्लैम खिताब हैं।

लांस आर्मस्ट्रांग-

अमरीका के साइक्लिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग ने 1999 से 2005 तक सात बार ट्यूर द फ्रांस का खिताब जीता। उनके खिलाफ एक प्रतियोगी की ड्रग प्रयोग करने की शिकायत पर लंबी जांच के बाद 2013 में उन्होंने स्वीकार किया कि वह हमेशा ड्रग सेवन करते थे। इसके बाद उनसे सातों खिताबों के साथ अन्य मेडल भी वापस ले लिए गए। 

अल्बर्टो कोंटाडोर-

स्पेन के साइक्लिस्ट अल्बर्टो कोंटाडोर को 2010 में ट्यूर द फ्रांस के दौरान क्लेनबुटेरोल नाम उत्तेजक पदार्थ के सेवन का दोषी पाया गया। उन पर दो साल का प्रतिबंध लगा और 2007,2009 और 2010 के ट्यूर द फ्रांस के खिताबों में से 2010 का खिताब छीन लिया गया। 2013 में उन्होंने फिर से वापसी की।

टायसन गे-

अमरीकी धावक टायसन गे पर 2013 में मादक पदार्थ के सेवन के दोषी पाए जाने पर एक वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा और उन्होंने 2012 में लंदन ओलंपिक में जीते 4गुणा 100 मीटर रिले के रजत पदक को वापस कर दिया। 

भारत तीसरे नंबर-

परप्रतिबंधित दवाओं के सेवन के मामले में दोषी पाए जाने में एथलीट और भारत्तोलकों की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन उनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते इसलिए उनके निलंबन पर भी ज्याद चर्चा नहीं होती। हमारे देश में भी डोपिंग के मामले खूब पाए जाते हैं। हाल ही में वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने 2014 में डोपिंग के नियमों को तोड़ने वाले एथलीटों की लिस्ट जारी की है। रियो ओलंपिक से करीब 100 दिन पहले आई वाडा की इस लिस्ट भारत तीसरे नंबर है। इस लिस्ट में रूस पहले नंबर पर, इटली दूसरे और भारत तीसरे नंबर पर है। 

विश्व डोपिंग रोधी लिस्ट (एडीआरवी) में 2014 में डोपिंग के दोषी पाए गए भारतीय एथलीटों की संख्या 96 बताई गई है। वह रूस (148) और इटली (123) से पीछे है। शीर्ष दस में बेल्जियम (91), फ्रांस (91), तुर्की (73), ऑस्ट्रेलिया (49), चीन (49), ब्राजील (46) और दक्षिण कोरिया (43) शामिल हैं। 2014 में भारत द्वारा 96 एडीआरवी मामले दर्ज किए गए। इसमें चार मामले (एथलेटिक्स और कुश्ती के दो-दो) जांच के लिए पेश नहीं हो सके। इन 96 उल्लंघन में 79 (56 पुरुष और 23 महिला) टूर्नामेंट के बाहर कराई गई जांच में असफल रहे।

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