शार्क के हमलों से ज्यादा सेल्फी लेने में गई जान
दस्तक टाइम्स/एजेंसी- नई दिल्ली: सेल्फी के चलन ने देश-दुनिया में कई पैमानों को बदल दिया है. सेल्फी अब एक शौक नहीं, जुनून बन गया है.
सोशल मीडिया पर जिसकी जितनी आकर्षक और लीक से हटकर सेल्फी होगी, उस पर ‘लाइक्स’ भी उतने ही ज्यादा आएंगे. सेल्फी के दीवाने अब ज्यादा से ज्यादा लाइक्स बटोरने की होड़ में कोई भी जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं. वेबसाइट ‘माशेबल’ पर जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2015 में, दुनियाभर में सेल्फी की वजह से होने वाली मौतें, शार्क के हमलों से होने वाली मौतों से अधिक हैं. सेल्फी के कारण हुई मौतों में ऊंचाई से गिरने और चलते वाहन से टकराने की वजह से सर्वाधिक हुई हैं.
रूस ने अपने नागरिकों को जोखिमभरी सेल्फी लेने से आगाह करते हुए जुलाई 2015 में ‘सेफ सेल्फी’ नाम से एक देशव्यापी अभियान की शुरुआत की थी.
एक अदद ‘परफेक्ट’ सेल्फी खींचने के प्रयास में आज लोग हर जोखिम उठाने को तैयार हैं. मसलन, बाघ, चीते, हाथी, मैकाक के साथ सेल्फी, ऊंची एवं खतरनाक पहाड़ी चोटियों पर सेल्फी, समुद्र में सेल्फी, रेल के पुलों और यहां तक कि शार्क के साथ सेल्फी.
सेल्फी की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. भारत समेत दुनियाभर में सेल्फी के चक्कर में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. नागपुर से लगभग 20 किलोमीटर दूर कुही की एक झील में नाव पर सवार छात्रों के एक समूह द्वारा सेल्फी लेने के दौरान नाव संतुलन बिगड़ने से डूब गई.
रूस में एक किशोर ने रेलवे पुल के ऊपर सेल्फी लेने की सोची, इस दौरान उसका पैर फिसला और वह नीचे जा गिरा, जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई. अमेरिका के कैलिफोर्निया में एक महिला ने कुछ अलग हटकर करना चाहा तो बंदूक के साथ सेल्फी खींचने की कश्मकश में बंदूक का ट्रिगर ही दब गया और उसे सेल्फी की कीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी.
सिंगापुर में तो एक शख्स पहाड़ की चोटी पर सेल्फी खींचने में मगन था और अचानक उसका पैर फिसल गया और वह नीचे जा गिरा. बुल्गारिया में बुल रन के दौरान सांडों के साथ सेल्फी खींचना भी एक शख्स को महंगा पड़ा. ताजमहल के सामने एक जापानी पर्यटक के सेल्फी खींचने की घटना हर किसी को याद होगी, जिसमें सेल्फी खींचने के दौरान जापानी युवक सीढ़ियों से नीचे गिर गया था और बाद में अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया था.
ऐसे कई उदाहरण हैं, जो यह बताने के लिए काफी है कि एक ‘परफेक्ट’ सेल्फी की चाहत में लोगों को चोटिल होने के साथ-साथ अपनी जान तक गंवानी पड़ी है.
दिल्ली के पीतमपुरा स्थित साइकोसिस ट्रीटमेंट सेंटर के मनोचिकित्सक अनूप लाघी कहते हैं, “दुनिया के हर कोने में हर रोज, हर मिनट सेल्फी ली जा रही है। सेल्फी के लिए कुछ भी कर गुजरना एक तरह के मनोरोग को भी दर्शाता है, जिसमें भीड़ से हटकर अलग दिखने की चाह में लोग कोई भी खतरा उठाने के लिए तैयार हैं.”
वर्ष 2013 में आस्ट्रेलिया में ‘माशेबल’ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 18-35 आयुवर्ग की दो-तिहाई से अधिक महिलाएं सेल्फी का इस्तेमाल फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किं ग साइट पर अपलोड करने में करती हैं.
लाघी कहते हैं कि यह मानव का स्वभाव है कि वह नई-नई चीजों के इस्तेमाल का आदी हो जाता है और इसके अत्यधिक उपयोग से त्रस्त होने में भी उसे समय नहीं लगता तो जाने-अनजाने आगे चलकर एक तरह के मनोविकार का रूप ले लेता है, जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है. इसलिए जरूरत है हर चीज का संयम व समझदारी से उपयोग करने की.
सेल्फी की शुरुआत की बात करें तो फोटोग्राफर जिम क्रॉस ने साल 2005 में पहली बार सेल्फी शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन इस शब्द को सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से 2012 में उस समय लोकप्रियता मिली, जब टाइम पत्रिका ने सेल्फी शब्द को उस साल के शीर्ष 10 शब्दों में स्थान दिया.
सेल्फी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 2013 में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश शब्दकोश के ऑनलाइन वर्जन में भी इसे शामिल कर लिया गया। इसी साल सेल्फी को 2013 का ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ भी घोषित किया गया.
अक्टूबर, 2013 में इमेजिस्ट लैब्स ने सेल्फी के नाम से आईओएस ‘सेल्फी एप’ भी बाजार में लांच किया था. जनवरी, 2014 में सोच्ची शीतकालीन ओलंपिक के दौरान ट्विटर पर ‘सेल्फी ओलंपिक्स’ के नाम से एक ‘मेम’ भी लोकप्रिय हुआ था.
यहां इसका जिक्र प्रासंगिक है कि सेल्फी ने ऑटोग्राफ के चलन को लगभग खत्म कर दिया है। आस्ट्रेलिया के मशहूर क्रिकेटर शेन वार्न का वो बयान याद आता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सेल्फी ने ऑटोग्राफ के युग का अंत कर दिया है.