अद्धयात्मजीवनशैली

शिवजी के हाथों में डमरू, त्रिशूल और गले में नाग आखिर क्यों?


सावन का पवित्र माह चल रहा है और आज इसका दूसरा सोमवार है। शास्त्रों के अनुसार, शिवजी को यह माह काफी प्रिय है। ऐसा कहा जाता है कि शिवजी इस माह में पाताल लोक चले जाते हैं। त्रिकालदर्शी शिवजी सभी देवों में सर्वशक्तिशाली और सरल-दयावान स्वभाव के स्वामी माने गए हैं। इसकी पहचान उनकी साधारण वेशभूषा से भी हो जाती है। शिव जी के साथ हमेशा नजर आते हैं त्रिशूल, डमरू और नाग। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को सभी अस्त्रों को चलाने में सिद्धि प्राप्त है। मगर धनुष और त्रिशूल उन्हें सबसे प्रिय हैं। त्रिशूल को रज, तम और सत गुण का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इन्हीं से मिलकर भगवान शिवजी का त्रिशूल बना है। महाकाल शिव के त्रिशूल के आगे सृष्टि की किसी भी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है। यह दैविक और भौतिक विनाश का भी द्योतक है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय जब विद्या और संगीत की देवी सरस्वती अवतरित हुईं तो उनकी वाणी से ध्वनि जो पैदा हुई वह सुर व संगीत रहित थी।

शास्त्रों के अनुसार, तब भगवान शिव ने 14 बार डमरू और अपने तांडव नृत्य से संगीत की उत्पति की और तभी से उन्हें संगीत का जनक माना जाने लगा। लोक मान्यताओं के अनुसार, घर में डमरू रखना शुभ गया है क्योंकि शिवजी के प्रतीक होने के साथ ही इसे सकारात्मक ऊर्जा का पूंज भी माना जाता है। पुराणों के अनुसार, भगवान शिव के गले में लटके नाग, नागलोक के राजा वासुकी हैं। ऐसा कहा जाता है कि वासुकी भोलेभंडारी शिव के परमभक्त थे, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें आभूषण स्वरूप में हमेशा अपने निकट रहने का वरदान दिया था। इस कारण से संपूर्ण नागलोक शिव के उपासक माने गए हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष ने चंद्रमा को शाप दिया था। जिससे मुक्त होने के लिए उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें न केवल जीवनदान दिया, बल्कि उन्हें अपनी शीर्ष पर धारण करने का सौभाग्य भी दिया। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग माना जाता है कि स्वयं चंद्रदेव ने भगवान शिव की उपासना के लिए ही स्थापित किया था। ऐसे इसका आध्यात्मिक अर्थ भी है, चंद्रमा को मन का कारक माना गया है इसलिए भगवान शिव द्वारा चंद्रमा को धारण करना यानी मन को नियंत्रित रखना हुआ। इसके साथ ही भगवान शिव से जुड़े सभी पर्व में चंद्र कलाओं का भी विशेष महत्व होता है।

धर्मग्रंथों में शिवजी के धनुष का नाम पिनाक बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि शिव के धनुष पिनाक की टंकार मात्र से ही बादल फट जाते हैं और पर्वत तक अपने स्थान से हिल जाते हैं। इसे सभी शास्त्रों में शक्तिशाली माना गया है। इसी से निकले एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरों को ध्वस्त करने का वर्णन भी शास्त्रों में मिलता है। शिवजी का एक नाम व्योमकेश भी है, उनकी जटाओं को वायु का प्रतीक भी माना जाता है। जिससे पवित्र नदी गंगा की अविरल धारा सदैव बहती रहती है। इसी कारण से भगवान शिव को जल चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। ऐसी पौराणिक कथा है कि जब गंगा स्वर्गलोक से सृष्टि में अवतरित हुईं तो उनका प्रवाह तीव्र और उग्र होने के कारण संहारक था, जिसे नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर लिया।

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