श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना
साधारण शब्दों में श्राद्ध का अर्थ है अपने कुल देवताओं, पितरों, अथवा अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है। हिंदू पंचाग के अनुसार वर्ष में पंद्रह दिन की एक विशेष अवधि आती है, जिसमें श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है। हालांकि इस बारे में पंडितों और ज्योतिषियों के अलग अलग मत और तर्क भी हो सकते हैं। इस बार यह तिथि चतुर्दशी तिथि पर है। यह तिथि 29 सितंबर 2016 यानी गुरुवार है।
पं. विशाल दयानंद शास्त्री बताते हैं कि इन दिनों में तमाम पूर्वज जो सशरीर परिजनों के बीच मौजूद नहीं हैं वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और उनके नाम से किये जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं।
कहते हैं माता-पिता के ऋण को पूरा करने का दायित्व संतान का होता है। इस स्थिति से बचने के लिये अपने पूर्वजों जो जीवित हैं उनके लिये सम्मान और जो पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं उनके प्रति श्रद्धा का भाव होना जरुरी है।
ज्योतिष शास्त्र मानता है यदि विधि द्वारा बनाए गए इस विधान का पालन नहीं होता तो जातक पर दोष लग जाता है। इसे पितृ दोष कहा जाता है। पर इस बारे में मतभिन्नता है और इसे साधिकार प्रमाणित भी नहीं किया जा सकता।