उज्जैन : धर्मधानी उज्जयिनी भगवान कृष्ण की शिक्षास्थली भी रही है। यहां सांदीपनि आश्रम में कृष्ण ने अपने भाई बलराम और सखा सुदामा के साथ गुरु सांदीपनि से विद्या ग्रहण की थी। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार दोनों भाइयों ने महज 64 दिनों में 64 कलाएं भी सीख ली थीं। इन 64 कलाओं में कुछ कलाएं रहस्मयी थीं, जिन्हें हर कोई नहीं सीख पाता था। इन कलाओं का उपयोग श्रीकृष्ण ने आततायियों के अंत के लिए किया। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में कृष्ण बलराम द्वारा ग्रहण की गई इन चौसठ कलाओं का उल्लेख है। 64 में से 20वीं कला इंद्रजाल, 21वीं चाहे जैसा वेष धारण कर लेना, 46वीं मुट्ठी की चीज या मन की बात बता देना, 49वीं शकुन-अपशकुन जानना, 55वीं छल से काम निकालना आदि शामिल हैं। दोनों ने 14 विद्याएं भी हासिल की थी।
श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में ही जरासंध के वध का भी प्रसंग है। इस प्रसंग में कृष्ण द्वारा भेष बदलकर ब्राह्मण बनने का उल्लेख है। दरअसल जरासंध ने भारतवर्ष के कई राजाओं को कैदी बना लिया था। भगवान श्री कृष्ण, भीम और अर्जुन ब्राह्मणों का वेश धारण कर गिरिव्रज जाते हैं और जरासंध से द्वंद्व युद्ध की भीक्षा मांगते हैं। इस पर जरासंध युद्ध के लिए तैयार होता और लड़ाई के लिए भीम को चुनता है। दोनों के बीच 28 दिनों तक युद्ध चला। कृष्ण द्वारा युक्ति बताए जाने पर भीम जरासंध का वध किया। इस प्रकार कई राजाओं को प्रताड़ना से मुक्ति मिली। इसी तरह कृष्ण ने गुरु द्वारा सिखाई गई कलाओं का प्रयोग पृथ्वी पर शांति स्थापित करने और लोककल्याण के लिए किया था। इन कलाओं से जुड़ी एक दर्शक दीर्घा सांदीपनि आश्रम में बनाई गई है। गुरु सांदीपनि आश्रम में जन्माष्टमी का पर्व रविवार को मनाया जाएगा। महाआरती में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होंगे। आश्रम परिसर की आकर्षक सज्जा की गई है।