संन्यासी ने राजा से मांगा ऐसा विचित्र दान, आप भी जरूर देना चाहेंगे!
दस्तक टाइम्स/एजेंसी: एक मशहूर संन्यासी एक राजा के पास पहुंचे। राजा ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। संन्यासी कुछ दिनों के लिए वहीं रुक गए। राजा ने उनसे कई विषयों पर चर्चा की और अपनी जिज्ञासा सामने रखी। संन्यासी ने बड़े विस्तार से राजा के सभी सवालों के जवाब दिए।
जाते समय राजा ने संन्यासी को कुछ देना चाहा। संन्यासी ने कहा- राजन आप मुझे क्या दे सकते हैं?
घमंड से राजा ने कहा, महाराज, मेरे पास अथाह सम्पत्ति है। धन-दौलत से भंडार भरे पड़े हैं। बताइए आपको कितना धन चाहिए?
संन्यासी मुस्कुराते हुए राजा से बोले, राजन, यह खजाना, सम्पत्ति तुम्हारी नहीं है। वह तो राज्य का है और तुम तो मात्र एक सरंक्षक हो।
राजा ने कहा, महल ले लीजिए महाराज, यह तो मेरा स्वयं का है।
उस पर संन्यासी ने कहा ये भी तो प्रजा का ही है।
राजा नतमस्तक होकर नीचे बैठ गया और बोला, महाराज, आप ही बता दीजिए मैं आपको क्या दे सकता हूं? मैं आपको कुछ दान देना चाहता हूं। मुझे इस धर्मसंकट से निकालिए। आप ही बताइए कि ऐसा क्या है जो मेरा है और मैं आपको दे सकूं?
संन्यासी ने कहा, राजन अगर हो सके तो अपने घमंड का दान मुझे दे। अहंकार में व्यक्ति दूसरे से खुद को श्रेष्ठ समझता है। इसी वजह से जब वह किसी को अधिक सुविधा सम्पन्न देखता है तो उस से ईर्ष्या कर बैठता है। हम अपनी कल्पना में पूरे संसार से अलग हो जाते हैं। राजा संन्यासी का आशय समझ गए थे।