ज्ञान भंडार
संवेदनहीनता राजनीति की पहली शर्त, मैं नेता होता तो दो साल में मर जाता: प्रेमजी
बेंगलुरु/मुंबई. 1.40 लाख करोड़ रु. की आईटी कंपनी विप्रो के संस्थापक चेयरमैन अजीम प्रेमजी शनिवार को आईआईएम के एक कार्यक्रम में थे। ‘परोपकार के बिजनेस’ विषय पर बायोकॉन चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ से उन्होंने राजनीति से लेकर परोपकार तक के सवालों के जवाब दिए। विप्रो में अपनी लगभग आधी होल्डिंग (53 हजार करोड़ रु.) दान कर चुके प्रेमजी के जवाब पढ़िये उन्हीं के शब्दों में…
मुझे लगता है- राजनीति में रहने के लिए व्यक्ति का असंवेदनशील होना बेहद जरूरी है। यह असंवेदनशीलता ही राजनीति की पहली शर्त है। शायद मैं इसीलिए राजनीति में नहीं हूं। अगर मैं राजनीति में होता तो दो साल के अंदर ही मर जाता। राजनीति में परोपकार का नजरिया रखने वाले प्रतिभाशाली लोगों की कमी है। ऐसे लोगों को निश्चित रूप से राजनीति में बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सही लोगों को लाए बिना आप राजनीति और गवर्नेंस का स्तर ऊंचा नहीं उठा सकते। लेकिन सवाल ये है कि सही लोग क्या खुद इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हैं?
मैंने परोपकार 14-15 साल पहले शुरू किया। मेरा यही सबसे बड़ा पछतावा है। मुझे लगता है मैं बहुत लेट हो गया। परोपकार के लिए पैसे देने में कई चुनौतियां हैं। पैसा होने के बावजूद आप ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच सकते। सबसे बड़ी चुनौती समस्या की व्यापकता, इसकी गहराई है। आप समस्या के छोटे अंश तक ही पहुंच पाते हैं। यह निराशाजनक होता है। शिक्षा जैसे मामलों में हमें काफी हद तक सरकारी मशीनरी पर निर्भर रहना पड़ता है। गांवों में सरकारी स्कूलों से हमने शुरूआत की थी। हाल के वर्षों में हमने खर्च बढ़ाया है क्योंकि हमने देखा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की क्वालिटी सुधारने की बहुत जरूरत है।
मुझसे अकसर पूछा जाता है कि आप परोपकार क्यों करते हैं। इस पर मेरा मानना है कि जिस देश में इतनी गरीबी हो, जहां पैसों की इतनी हेरा-फेरी होती हो, जहां इतने लोग वंचित हों वहां परोपकार ही सही तरीका है। मुझे इसकी प्रेरणा मां से मिली, जो मुंबई में डॉक्टर थीं। दान के मामले में भारतीय अभी भी अमेरिकियों से बहुत पीछे हैं। क्योंकि हमारे यहां परिवार का आकार काफी बड़ा होता है। संपत्ति में उनकी भी हिस्सेदारी होती है। दूसरी बड़ी वजह यह है कि ज्यादातर भारतीय सोचते हैं कि वे अपने बच्चों के लिए संपत्ति छोड़ जाएंगे। फिर भी मेरा सोचना है कि पूर्व-पश्चिम या उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में लोग ज्यादा दान करते हैं।