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जब सांसदों ने गोलियों की गूंज को समझा था पटाखों की आवाज, फिर हुआ कुछ ऐसा…
संसद हमला (Parliament Attack) 13 दिसंबर 2001 यानी आज से 17 साल पहले 5 हथियारबंद आतंकियों ने नई दिल्ली में स्थित भारतीय लोकतंत्र के मंदिर माने जाने वाले संसद भवन (Parliament Of India) पर हमला कर दिया था। हमला करने वाले आतंकी लश्कर ए तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के सदस्य थे। इस आतंकी हमले में 14 लोगों की मौत हो गई थी। मरने वालों में एक आम नागरिक, पांच आतंकवादी और अन्य सुरक्षाकर्मी शामिल थे और कई लोग घायल भी हुए थे। देश की संसद लहुलूहान थी, यह उस समय यह समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है? 13 दिसंबर 2001 को संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था विपक्ष के हंगामें की वजह से दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित कर दिया गया। कार्यवाही स्थगित करने के लगभग 40 मिनट बाद सेना की वर्दी पहने पांच आतंकवादियों ने संसद में प्रवेश कर लिया।
कार्यवाही स्थगित होने के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नेता प्रतिपक्ष सोनिया गांधी संसद परिसर से बाहर जा चुके थे। कुछ सांसद संसद भवन से बाहर निकल गए, कुछ सांसद सेंट्रल हॉल में बीतचीत करने में जुट गए और कुछ लाइब्रेरी चले गए। लेकिन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत लगभग 100 सांसद परिसर में मौजूद रह गए थे।
शक की नहीं थी कोई गुंजाइश
संसद में मौजूद सांसदों को कोई भी अंदाजा नहीं था कि क्या होने वाला है। एक कार संसद की सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी इस कार में लाल बत्ती और सायरन लगा हुआ था। किसी को शक की गुंजाइश ही नहीं थी।
आतंकियों ने कार को संसद के गेट नंबर 9 की तरफ मोड़ दिया। कुछ दूर कार चलने के बाद पत्थरों से टकरा गई जिसकी वजह से कार की रफ्तार थम गई। उप राष्ट्रपति के काफिले में एस्कॉर्ट वन कार पर तैनात दिल्ली पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर जीतराम को शक हुआ कि कार में आतंकी है तो वह कार की तरफ भागे।
उसके हाथ में रिवॉल्वर देखकार कार में बैठे सभी आतंकी बाहर निकलों को विस्फोट करने के लिए कार के बाहर तार बिछाना शुरू कर दिया। जीतराम ने कुछ देर न करते हुए गोली चला दी।
जीतराम की गोली के जवाब में आतंकियों ने भी ताबड़तोड़ गोलबारी शुरू कर दी। किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि संसद की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक हो चुकी है। इसके बाद गोलियों की आवाज सुनने के बाद गेट नंबर 11 पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी उस तरफ पहुंचे। संसद के दरवाजे बंद करवाने का अलर्ट देकर जेपी यादव भी गोलियों की आवाज सुनकर वहां पहुंचे।
सांसदों ने गोलियों की गूंज को समझा था पटाखों की आवाज
आतंकियों को रोकने की कोशिश आतंकियों द्वारा की जा रही ताबड़तोड़ फायरिंग में दोनों वहीं ढेर हो गए। आतंकी फायरिंग करते हुए और हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए संसद के गेट नंबर 9 की तरफ दौड़े। गोलियों की आवाज सुनकर संसद परिसर में तैनात सुरक्षाकर्मियों में हड़कंप मचा गया। जिस समय फायरिंग शुरू हुई तो उन्हें इस बात का हैरत थी कि आखिर कोई कैसे संसद भवन परिसर के नजदीक पटाखे फोड़ रहा है। इस बात से जो लोग अंदर मौजूद थे वो बिल्कुल अंजान थे कि संसद पर आतंकी हमला हुआ है।
आखिरी आतंकी मचाता रहा तबाही
जिस समय आतंकवादी ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे उस दौरान फायरिंग गूंज सुनकर सुरक्षाकर्मियों ने मोर्चा संभाला और आतंकियों की गोलीबारी का मुंहतोड़ जवाब देते हुए चार आंतकियों को मार गिराया। आखिरी और पांचवां आतंकी फायरिंग करता हुआ संसद भवन के गेट नंबर एक पर पहुंच गया। संसद भवन के गेट नंबर से ही मंत्री सांसद और पत्रकार संसद भवन में प्रवेश करते हैं।
गोलियों की ताबड़तोड़ आवज सुनने के बाद इस गेट को भी बंद कर दिया गया था। अब आखिरी आतंकी एक नंबर गेट पर मौजूद था और लगातार फायरिंग करता ही जा रहा था, आतंकी के शरीर पर विस्फोटक भी बंधे थे।
सुरक्षाबल भी उसकी गोलीबारी का मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। इसी बीच एक गोली आतंकी की पीठ पर लगी और जोरदार धमाका हो गया। धमाके से आतंकी के शरीर की धज्जियां उड़ गईं। मांस के टुकड़े दूर-दूर तक फैल गए थे, एक दम से पूरा माहौल कुछ पल के शांत हो गया था। लेकिन इस हमले में पांच सुरक्षाकर्मी एक संसद का सुरक्षागार्ड शहीद हो गया था।
अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया गया
संसद भवन पर 13 दिसंबर 2001 में हुए हमले के बाद जांच एजेंसियों इस हमले की जांच की। जांच एजेंसियों ने इस हमले में आतंकी अफजल गुरु, शौकत हुसैन और एसएआर गिलानी के अलावा नवजोत संधू को आरोपी बनाया था।
इन आरोपियों में से शौकत हुसैन की सजा को आजीवन कारवास में बदल दिया गया था और एसएआर गिलानी, नवजोत संधू को कुछ सालों बाद रिहा कर दिया गया था।
लेकिन आरोपी आतंकी अफजल गुरु की मौत की सजा को बरकरार रखा गया था। साल 2013 में 9 फरवरी को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।