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संस्कृत की ये पांच सूक्तियाँ जो पढ़ाती हैं हमें दैनिक जीवन का पाठ

संस्कृत की सूक्तियाँ

संस्कृत भारत देश की प्राचीन भाषा है, और इसलिए हमारे प्राचीन ग्रन्थ, साहित्य भी संस्कृत में ही लिखे हुए हैं। ऐसे में संस्कृत का ज्ञान जरूरी ही नहीं बल्कि अतिआवश्यक भी हो जाता है। अतः  हम कह सकते हैं कि ही संस्कृत, हमारी संस्कृति को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है। संस्कृत के महान शब्दकोश और ज्ञान कोश की बात करें तो संस्कृत में ऐसे सैकड़ों शब्द है, जो अपने आप में यूनिक है। ये शब्द हमें जीवन का अर्थ समझाने के लिए पर्याप्त है। वैसे तो हमने स्कूल में बहुत सारे श्लोक पढ़े होंगे, जिनमें सुभाषितानि श्लोक, विदुर निति श्लोक और भगवत गीता श्लोक, चाणक्य नीति शामिल है। लेकिन आज हम बात करने वाले है सूक्तियों की।

संस्कृत की ये पांच सूक्तियाँ जो पढ़ाती हैं हमें दैनिक जीवन का पाठ

संस्कृत में सूक्तियों का उतना हीयोगदान है, जितना किसी साहित्य में उसके शब्दों का। यूँ तो संस्कृत के श्लोक भी जीवन के बिभिन्न पहलुओं को समझाते हैं लेकिन ये सूक्तियां हमें केवल यथार्थ बताती है, जीवन से जुडी हुई छोटी से छोटी बात समझाती है। इसलिए देखा जाए तो सूक्तियों का अधिक महत्व है। और आज हम आपको कुछ ऐसी ही सूक्तियों के बारे में बताने जा रहे हैं। जो दैनिक जीवन को महत्वपूर्ण बनाने में आपकी मदद करती है।

और ये सूक्तियां है… संस्कृत की सूक्तियाँ 

अति सर्वत्र वर्जयेत – यह सूक्ति बहुत ही प्रसिद्द सूक्ति है, जो हमें दैनिक जीवन में अति का पाठ यानी अत्यधिक मात्रा का पाठ पढ़ाती है। किसी भी चीज की अत्यधिक मात्रा हमेशा नुकसानदायक होती है, फिर चाहे वो कोई भी चीज हो, यही इस सूक्ति का अर्थ है। 

विनाशकाले विपरीत बुद्धिः – यह सूक्ति, केवल सूक्ति ही नहीं बल्कि हमारे लिए संकेत है।जब जीवन में किसी मद में चूर होकर इंसान सिर्फ अपने अनुसार कार्य करने लगता है, तब उसे सही-गलत का कोई फर्क समझ में नहीं आता है, तब यह सूक्ति इंसान के चरित्र पर चरितार्थ होती है।

उदारचरितानाम तु वसुधेव कुटुम्बकम- यह सूक्ति हमें इंसानी चरित्र और उसके इस संसार से बने संवंध को बताती है। इस सूक्ति का अर्थ है कि उदार व्यक्तियों के लिए तो ये पूरा संसार ही उनका घर परिवार है। अगर दूसरी तरह से देखा जाए तो यह सूक्ति हमें मानवता से प्रेम करना सिखाती है।

अलसस्य कुतो विद्या- किसी इंसान के जीवन को सार्थक बनाने में विद्या का बहुत महत्व होता है। और इसी महत्व को इस सूक्ति द्वारा समझा जा सकता है। इस सूक्ति का मतलब है… जहाँ आलस्य होता है, वहां विद्या नहीं हो सकती? इसलिए आलस्य को छोड़ कर हमें विद्या प्राप्त करना चाहिए।

सत्संगति स्वर्गवासः- इस सूक्ति का अर्थ है कि अच्छी संगती में रहना स्वर्ग में रहने जैसा है। अगर कुछ गहन अध्ययन में जाकर देखे तो यह सूक्ति हमें बताती है कि हमें कैसी संगत अर्थात कैसे रिश्ते बनाने चाहिए।

संस्कृत की सूक्तियाँ

इन सूक्तियों से ही हमें संस्कृत की शक्ति का पता चल जाता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि संस्कृत कोई आम भाषा ना होकर खुद देववाणी है। जिसने लोगों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ दैनिक जीवन का पाठ भी बखूबी पढ़ाया है।

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