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‘सकलैन मुश्ताक नहीं, विराट कोहली के कोच की देन है घातक गेंद दूसरा’

क्रिकेट की दुनिया में ‘दूसरा’ का जिक्र आते ही पाकिस्तानी दिग्गज सकलैन मुश्ताक का नाम सामने आता है, जिन्हें ‘दूसरा’ का जनक माना जाता है. लेकिन, एक नई किताब में दावा किया गया है कि भारतीय कप्तान विराट कोहली के बचपन के कोच राजकुमार शर्मा ने सबसे पहले ऑफ स्पिनरों की इस घातक गेंद का सबसे पहले उपयोग किया था.

'सकलैन मुश्ताक नहीं, विराट कोहली के कोच की देन है घातक गेंद दूसरा’राजकुमार शर्मा ऑफ स्पिनर थे और उन्होंने दिल्ली की तरफ से नौ प्रथम श्रेणी मैच भी खेले हैं. हाल में प्रकाशित किताब ‘क्रिकेट विज्ञान’ में कहा गया कि शर्मा ने अस्सी के दशक में ही ‘दूसरा’ का उपयोग शुरू कर दिया था और 1987 में उन्होंने पाकिस्तान के बल्लेबाज एजाज अहमद को ऐसी गेंद पर आउट भी किया था.

वरिष्ठ खेल पत्रकार धर्मेंद्र पंत द्वारा लिखी गई इस किताब को नेशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित किया है. किताब में कहा गया है, ‘अमूमन जब दूसरा का जिक्र होता है, तो सकलैन को इसका जनक कहा जाता है, लेकिन उनसे भी पहले दिल्ली के ऑफ स्पिनर राजकुमार शर्मा ने इसका उपयोग करना शुरू कर दिया था.’

इसके अनुसार राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी (एनसीए) ने शर्मा के इस दावे पर मुहर लगाई थी और बायोमैकेनिक्स विशेषज्ञ डॉ रेने फर्नांडीस ने दूसरा करते समय राजकुमार के एक्शन को शत प्रतिशत सही पाया था.

इसमें कहा गया है, ‘राजकुमार यदि ‘दूसरा’ के जनक थे, तो इसे क्रिकेट जगत में सकलैन ने ख्याति दिलाई….. पाकिस्तान विकेटकीपर मोइन खान ने इसे दूसरा नाम दिया. सकलैन जब गेंदबाजी कर रहे होते थे, तो मोइन विकेट के पीछे से चिल्लाते थे, ‘सकलैन दूसरा फेंक दूसरा.’

इस किताब में क्रिकेट के ‘क्रोकेट’ से ‘क्रिकेट’ बनने मतलब क्रिकेट के इतिहास, उसके हर पहलू से जुड़े विज्ञान, हर शॉट की उत्पति, हर शैली की गेंद की उत्पति, खेल के नियम की जानकारी रोचक किस्सों के साथ दी गई है.

अगर 1770 से 1780 के आसपास खेलने वाले विलियम बेडले और जान स्मॉल ने बल्लेबाजों को ड्राइव करना सिखाया, तो इसके लगभग 100 साल बाद ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच मार्च 1877 में जब पहला टेस्ट मैच खेला गया था तो तब ‘गुगली’ और ‘स्विंग’ जैसे शब्द क्रिकेट का हिस्सा नहीं हुआ करते थे.

किताब में गुगली के क्रिकेट से जुड़ने का रोचक किस्सा दिया गया. इसमें लिखा गया है, ‘टेस्ट क्रिकेट के जन्म के 20 साल बाद 1897 में इंग्लैंड के ऑलराउंडर बर्नार्ड बोसेनक्वेट ने बिलियर्ड्स के टेबल पर एक खेल ‘टि्वस्टी-ट्वोस्टी’ खेलते हुए इस रहस्यमयी गेंद की खोज की थी.’

इसी तरह से किताब में बताया गया है कि कैरम बॉल श्रीलंका के रहस्यमयी स्पिनर अजंता मेंडिस नहीं, बल्कि दूसरे विश्वयुद्ध में भाग लेने वाले एक फौजी की देन है. इसमें स्विंग के वैज्ञानिक पहलू पर भी विस्तार से चर्चा की गई है.

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